दो कमल आहार के उदाहरण दीजिए
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एक परिचय
विद्वानों ने ठीक कहा है ''स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ मन बसा करता है।'' जब शरीर स्वस्थ रहता है तो हम स्वस्थ्य योजना की कल्पना करते हैं तथा इसे कार्यरूप देते हैं किन्तु शरीर जब स्वस्थ नहीं है तो अर्जित भोग की वस्तुए भी धरी रह जाती है। हम लोगों को भोग करते तो देखते हैं किन्तु भोग नहीं कर पाते।
जीवन जीने के लिये समुचित मात्रा में शरीर को भोजन की आवश्यकता होती है। किन्तु स्वस्थ जीवन जीने के लिये, शुद्ध पेयजल तथा संतुलित आहार की जरुरत होती है।
झारखंड में लगभग 78 प्रतिशत आबादी ग्रामों में रहती है, जहाँ आधुनिक सुविधाएँ शहरी क्षेत्र की तुलना में नगण्य है। यदि उपलब्ध हो भी जाएँ तो भी उनका भोग करने के लिए उतने पैसे नहीं है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या घटने के बजाए बढ़ रही है। ऐसे में कुपोषण, रक्त अल्पता (एनेमिया), अंधापन तथा आँख के अन्य रोग, घेंघा जैसे पोषाहार की कमी से जनित रोग बढ़ रहें हैं। काजु, अंगुर, अनार, संतरा, सेव, नाशपाति जैसे पोशाहार युक्त फल उनके पहुँच से बाहर है।
किन्तु प्रकृति सदा ही मानव की सेवा में रही है। प्रकृति में भी आपरूपी पैदा होने वाले खाद्य पदार्थ हैं जो पोषाहार की कमी को पूरा करने में सहायक हो सकते हैं। आवश्यकता है जानकारी की, ज्ञान सशक्तिकरण की। गरीबों का भोजन कहे जाने वाले खाद्य पदार्थों, में पाये जाने वाले पोषक तत्वों, को उजागर करने का यह एक छोटा सा प्रयास है। इस लेख में स्वास्थ्य के लिए पोषाहार जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहायड्रेट, उर्जा तथा विटामिनों, खनिज एवं लवण की आवश्यकता, मात्रा आदि का वर्णन है। इसे जानकार एवं सही रूप में उपयोग कर, पोषाहार की कमी द्वारा जनित रोग जैसे कुपोषण, रक्तअल्पता (एनेमिया), अंधापन, घेंघा आदि रोगों से बचने का प्रयास कर सकते हैं। इन रोगों के शिकार, अधिकतर गर्भवती स्त्रियाँ, दूध पिलाने वाली माताएँ, एक से तीन वर्ष के बच्चे तथा अन्य स्त्रियाँ अधिक होती हैं और वे बहुधा मृत्यु के कारण बनते हैं। अतः गृहस्वामिनियों को इसकी पूरी जानकारी देने की जरूरत है, जिससे कि वे इन्हें भोजन में शामिल कर सकें।
इस पुस्तिका में दिये गए आँकड़े हैदराबाद स्थित इण्डियन कौंसिल ऑफ़ र्मेडिकल रिसर्च, द्वारा प्रकाशित (न्यूट्रिटिक वैल्यु ऑफ इंडियन फूडस) रीप्रिन्ट 1991 पर आधारित है। वे एक सौ ग्राम खाए गए खाद्य पदार्थ पर आधारित है।
आज आजादी के 62 साल बाद भी कुपोषण की समस्या का हल नहीं हुआ है।
आदिवासी भाई-बहन और बच्चों का जीवन जो जंगल और खेती पर निर्भर था आज वह जंगल की नैर्सगिक सम्पदा जैसे फल-फूल, जड़ी बूटी पानी आदि का पता ही नहीं हैं।
आर्थिक नीतियों के बदलाव से और बढ़ते बाजारीकरण की वजह से उन्हें जीविका की सामग्री खरीदना मुश्किल हो रहा है। यह पुस्तक उनकी संवदेनशीलता और लगन का परिणाम है। भोजन की जानकारी होना अति आवश्यक है, आज के जमाने में आर्थिक लाभ ही यह सुनिश्चित कर रहा है कि खाद्य पदार्थ बाजार में किस मूल्य पर मिलेंगे।
पोषण सामग्री, जैसे साग-सब्जी, दाल, अन्न, तेल का उगाना, उसको एकत्रित करना ओर जरूरतों को ध्यान में रखते हुए वितरण एवं उचित उपयोग करना अति आवश्यक है।
इस लेख में उन बातों का ब्यौरा और विवरण उपलब्ध है जिससे ग्रामीण इलाके के लोगों और शहरी क्षेत्र के वासियों को भोजन की उपलब्धता और स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए अनेक तरह की जानकारियाँ हासिल होगीं। खासियत यह है कि पत्तेदार सब्जियों और सागों के नाम मुण्डारी में लिखे गए है। साथ में हिन्दी और वनस्पतिशास्त्रीय अंग्रेजी में नामों को लिखा गया है। इससे खाद्य सामग्रियों के नामों की पहचान और उसके बारे में सामान्य ज्ञान रखनेवालों को काफी सहूलियत होगी।
साधारणतः गांवों में लोग प्रकाषतिक तौर पर मिलनेवाली चीजों को खाने के रूप में इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन उसमें पाए जानेवाले तत्त्वों के बारे में पता नहीं होता है| पोषाहार, पोषक तत्त्व और उसके महत्च के बारे जो जानकारी दी गई है वह बहुमूल्य है, परम्परागत अनाजों, दाल एवं फलियों, पत्तेदार सब्जियों और सागों में प्रोटीन की जानकारी के वैज्ञानिक आधार की जानकारी उन्होंने आम ग्रामीणों के स्वास्थ्य रक्षा के मद्देनजर एकत्रित किया है मांस और कुक्कुट की सूची देकर उसमें प्रोटीन की मात्रा का विवरण दिया है अन्य खाद्य पदार्थ महुआ बीज, महुआ फूल, सखुआ बीज, ईमली बीज, हाउ यानी दमेता, भेलवा बीज जिसे मुण्डारी में सोसो कहा जाता है, में प्रोटीन की मात्रा जिक्र कर उन्होंने देशज ज्ञान को सुरक्षित ही नहीं बल्कि अमूल्य जानकारी संग्राहित किया है।
भोजन हमारे जीवन की मूल आवश्यकताओं में से एक है। वह कई खाद्य पदार्थो से बनता है। इस मिश्रण में अनाज, दलहन, तेलहन शाक, सब्जियाँ, दूध या दूध से बने पदार्थ, मांस, मछली, अण्डा आदि हो सकते हैं। इसका मिश्रण, रूची, स्वाद, उपलब्धता तथा आर्थिक क्षमता पर निर्भर करता है।
भोजन के बिना हम जी नहीं सकते। भोजन ही हमारे शरीर को गतिशील बनाने के लिए उर्जा प्रदान करता है। जब हम समुचित मात्रा में भोजन नहीं लेते हैं तो शीघ्र ही भूख लगने लगती है तथा कार्य करने की शाक्ति क्षीण हो जाती है।
शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए, शिशु से वयस्क होने तक के विकास के लिए, रोग मुक्त रहने के लिए, सही अनुपात में समुचित भोजन की आवश्यकता है। भोजन में कमी कुपोषण तथा रक्तअल्पता को जन्म देती है। इन दोनों ही स्थिति में शरीर की रोधक शाक्ति कम हो जाती है। रोगों से लड़ने की शाक्ति को रोधक शाक्ति कहा जाता है। रोधक शक्ति में कमी होने पर कोई भी रोग शरीर पर हावी हो