ठुकरी बाबा की चारित्रिक विशेषता
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haaaaaaaa what is your question
yaar thukri baba
ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले ठकुरी की यही सरल, सहज स्वाभाविक प्रवत्ति ही लेखिका को आकर्षित करती है।
ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले ठकुरी की यही सरल, सहज स्वाभाविक प्रवत्ति ही लेखिका को आकर्षित करती है।महादेवी वर्मा कहती हैं कि ठकुरी बाबा के चरित्र में उदारता व आतिथ्य भाव कूट-कूट कर भरा है। वह सबको अपना अतिथि बनाने को आतुर रहते हैं। साथ ही साथ वह किसी के दूसरे के घर जाते हैं तो दूसरे के घर का अन्न खाकर बदले में कुछ देने की परंपरा का निर्वहन करने का सरल-सहज भाव उनके अंदर है इसलिये वो अपनी गठरी में खाने-पीने का सामान लेकर चलतें है।
ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले ठकुरी की यही सरल, सहज स्वाभाविक प्रवत्ति ही लेखिका को आकर्षित करती है।महादेवी वर्मा कहती हैं कि ठकुरी बाबा के चरित्र में उदारता व आतिथ्य भाव कूट-कूट कर भरा है। वह सबको अपना अतिथि बनाने को आतुर रहते हैं। साथ ही साथ वह किसी के दूसरे के घर जाते हैं तो दूसरे के घर का अन्न खाकर बदले में कुछ देने की परंपरा का निर्वहन करने का सरल-सहज भाव उनके अंदर है इसलिये वो अपनी गठरी में खाने-पीने का सामान लेकर चलतें है।कल्पवास में वस्तुओं के विनिमय अर्थात अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार एक-दूसरे से वस्तुओं के आदान-प्रदान की परंपरा रही है।
ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले ठकुरी की यही सरल, सहज स्वाभाविक प्रवत्ति ही लेखिका को आकर्षित करती है।महादेवी वर्मा कहती हैं कि ठकुरी बाबा के चरित्र में उदारता व आतिथ्य भाव कूट-कूट कर भरा है। वह सबको अपना अतिथि बनाने को आतुर रहते हैं। साथ ही साथ वह किसी के दूसरे के घर जाते हैं तो दूसरे के घर का अन्न खाकर बदले में कुछ देने की परंपरा का निर्वहन करने का सरल-सहज भाव उनके अंदर है इसलिये वो अपनी गठरी में खाने-पीने का सामान लेकर चलतें है।कल्पवास में वस्तुओं के विनिमय अर्थात अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार एक-दूसरे से वस्तुओं के आदान-प्रदान की परंपरा रही है।लोगों से वस्तुओं के विनिमय अर्थात आदान-प्रदान में वो सरल व सीधे हैं और ये नही देखते कि लोगों उनसे क्या लेकर बदले में क्या दिया।
ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले ठकुरी की यही सरल, सहज स्वाभाविक प्रवत्ति ही लेखिका को आकर्षित करती है।महादेवी वर्मा कहती हैं कि ठकुरी बाबा के चरित्र में उदारता व आतिथ्य भाव कूट-कूट कर भरा है। वह सबको अपना अतिथि बनाने को आतुर रहते हैं। साथ ही साथ वह किसी के दूसरे के घर जाते हैं तो दूसरे के घर का अन्न खाकर बदले में कुछ देने की परंपरा का निर्वहन करने का सरल-सहज भाव उनके अंदर है इसलिये वो अपनी गठरी में खाने-पीने का सामान लेकर चलतें है।कल्पवास में वस्तुओं के विनिमय अर्थात अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार एक-दूसरे से वस्तुओं के आदान-प्रदान की परंपरा रही है।लोगों से वस्तुओं के विनिमय अर्थात आदान-प्रदान में वो सरल व सीधे हैं और ये नही देखते कि लोगों उनसे क्या लेकर बदले में क्या दिया।कोई उन्हें मात्र एक गुड़ की डली देकर बदले में आधा सेर आटा ले जाता है तो कोई तोला भर दही देकर कटोरा भर चावल ले जाता है। कोई छंटाक भर घी देकर लोटा भर दूध चाहता है और कोई केवल चार मिर्चों के बदले शकरकंद का आनन्द लेना चाहता है।
ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले ठकुरी की यही सरल, सहज स्वाभाविक प्रवत्ति ही लेखिका को आकर्षित करती है।महादेवी वर्मा कहती हैं कि ठकुरी बाबा के चरित्र में उदारता व आतिथ्य भाव कूट-कूट कर भरा है। वह सबको अपना अतिथि बनाने को आतुर रहते हैं। साथ ही साथ वह किसी के दूसरे के घर जाते हैं तो दूसरे के घर का अन्न खाकर बदले में कुछ देने की परंपरा का निर्वहन करने का सरल-सहज भाव उनके अंदर है इसलिये वो अपनी गठरी में खाने-पीने का सामान लेकर चलतें है।कल्पवास में वस्तुओं के विनिमय अर्थात अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार एक-दूसरे से वस्तुओं के आदान-प्रदान की परंपरा रही है।लोगों से वस्तुओं के विनिमय अर्थात आदान-प्रदान में वो सरल व सीधे हैं और ये नही देखते कि लोगों उनसे क्या लेकर बदले में क्या दिया।कोई उन्हें मात्र एक गुड़ की डली देकर बदले में आधा सेर आटा ले जाता है तो कोई तोला भर दही देकर कटोरा भर चावल ले जाता है। कोई छंटाक भर घी देकर लोटा भर दूध चाहता है और कोई केवल चार मिर्चों के बदले शकरकंद का आनन्द लेना चाहता है।पर ‘ठकुरी बाबा’ किसी को भी मना नही करते और अपनी सरल प्रवृत्ति से इसे बिल्कुल सहजता से स्वीकार करते हैं।
ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले ठकुरी की यही सरल, सहज स्वाभाविक प्रवत्ति ही लेखिका को आकर्षित करती है।महादेवी वर्मा कहती हैं कि ठकुरी बाबा के चरित्र में उदारता व आतिथ्य भाव कूट-कूट कर भरा है। वह सबको अपना अतिथि बनाने को आतुर रहते हैं। साथ ही साथ वह किसी के दूसरे के घर जाते हैं तो दूसरे के घर का अन्न खाकर बदले में कुछ देने की परंपरा का निर्वहन करने का सरल-सहज भाव उनके अंदर है इसलिये वो अपनी गठरी में खाने-पीने का सामान लेकर चलतें है।कल्पवास में वस्तुओं के विनिमय अर्थात अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार एक-दूसरे से वस्तुओं के आदान-प्रदान की परंपरा रही है।लोगों से वस्तुओं के विनिमय अर्थात आदान-प्रदान में वो सरल व सीधे हैं और ये नही देखते कि लोगों उनसे क्या लेकर बदले में क्या दिया।कोई उन्हें मात्र एक गुड़ की डली देकर बदले में आधा सेर आटा ले जाता है तो कोई तोला भर दही देकर कटोरा भर चावल ले जाता है। कोई छंटाक भर घी देकर लोटा भर दूध चाहता है और कोई केवल चार मिर्चों के बदले शकरकंद का आनन्द लेना चाहता है।पर ‘ठकुरी बाबा’ किसी को भी मना नही करते और अपनी सरल प्रवृत्ति से इसे बिल्कुल सहजता से स्वीकार करते हैं।‘ठकुरी बाबा’ की यही सरलता, सहजता व स्वाभाविकता ही उनकी चारित्रिक विशेषता है।