Hindi, asked by NikhilKumarJha60, 5 hours ago

दुख जीवन को निखरता है ' इस विषय पर एक लघुकथा लिखिए।​

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Answered by ishusri410
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Answer:

दुख तो सहना ही पड़ता है :

दुख, विपत्ति, कष्ट, रोग, शोक, ये शब्द ही ऐसे हैं कि संसार में हर कोई इनके नाम से ही कांपता है। संसार में ऐसा कोई नहीं, जो अपने जीवन में इनमें से किसी की भी आवक चाहता हो। सभी व्यक्ति उपाय करते हैं कि ये 5 शब्द उनके जीवन से यथासंभव दूर रहें। हर व्यक्ति यह कामना करता है, प्रार्थना करता है कि ईश्वर उसे इन तकलीफों से बचाए, पर सच्चाई तो यही है कि इन शब्दों से लगभग रोज ही किसी ना किसी का पाला पड़ता ही है।

हर किसी को यही लगता है कि सारे कष्ट उसी के जीवन में आकर बैठ गए हैं और बाकी सब मजे से, आनंद से जी रहे हैं, लेकिन यह सच नहीं है। संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसका पाला किसी ना किसी रूप में दुख से ना पड़ा हो। हर किसी को अपना दुख बड़ा लगता है, पर सच्चाई यही है कि दुख हर व्यक्ति के जीवन में शामिल है।

आज इसी संदर्भ में भगवान बुद्ध की एक कथा का आनंद लेते हैं...

देव योग से उसी समय नगर में भगवान बुद्ध आए हुए थे। जब गौतमी किसी की बात मानने को तैयार ना हुई, तो किसी ने कहा कि तुम भगवान बुद्ध के पास जाओ। वही तुम्हारे पुत्र को जीवित कर सकते हैं। यह बात सुन गौतमी अपने पुत्र की पार्थिव देह लेकर बुद्ध के पास जा पहुंची और रोते हुए बोली कि भगवन्! यह मेरे जीवन का एकमात्र सहारा है। किसी के जीवन में इतना दुख नहीं आता, जितना मैंने सहा है। अब और दुख सहने की मेरी शक्ति नहीं है। आपको इसे जीवित करना ही होगा।

बुद्ध ने कहा कि मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूंगा :

उसकी बात सुनकर बुद्ध ने कहा कि मैं तुम्हारे पुत्र को जीवित कर दूंगा। बस, तुम मुझे एक चीज लाकर दे दो। तुम मुझे किसी ऐसे घर से एक वस्त्र लाकर दे दो, जहां किसी की मृत्यु कभी ना हुई हो। गौतमी उसी क्षण पुत्र की देह भगवान के चरणों में रखकर चल पड़ी। सुबह से शाम हो गई, पर उसे कोई ऐसा घर ना मिला, जहां किसी की मृत्यु ना हुई हो। वह निराश होकर भगवान बुद्ध के चरणों में गिर पड़ी। भगवान ने उसे कहा- गौतमी! संसार में ऐसा कोई नहीं, जिसे दुख का सामना ना करना पड़ा हो। मुझे ही दुख क्यों मिला, यह प्रश्न कोई महत्व नहीं रखता। वास्तव में दुख-सुख तो अपने ही पूर्व जन्मों का कर्मफल होते हैं। जिसने जैसे कर्म किए, उसे वैसे ही फल भोगने पड़ते हैं। तुम भी सत्य को स्वीकार करो। अपने पुत्र को विदा करो और अपने कर्मफल सुधारने के प्रयास करो।

हर किसी को अपने हिस्से के दुख सहन करना ही पड़ते हैं :

गौतमी ने जान लिया था कि दुख से बचा नहीं जा सकता, हर किसी को अपने हिस्से के दुख सहन करना ही पड़ते हैं। दुख से बचने का एक ही उपाय है- अच्छे कार्य करना, किसी को कष्ट ना पहुंचाना। भगवान बुद्ध की बात मान कर गौतमी ने अपने पुत्र को पंच तत्व में विलीन किया और स्वयं भगवान बुद्ध की शरण में आ गई।यही इस जीवन का सार है। दुख को टाला नहीं जा सकता, उसकी तुलना नहीं की जा सकती। अपने कर्मफल को हर एक को भोगना ही पड़ता है। दुख को तो सहन करना ही पड़ता है।

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