Hindi, asked by prakshal813, 1 month ago

दुःख का अधिकार समरी इन् 200 वोर्द्स्​

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Answered by thakurvijay197kumars
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लेखक ने कहा है कि मनुष्यों की पोशाकें उन्हें विभिन्न श्रेणियों में बाँट देती हैं। प्राय: पोशाक की समाज में मनुष्य का अधिकार और उसका दर्ज़ा निश्चित करती है। हम जब झुककर निचली श्रेणियों की अनुभूति को समझना चाहते हैं तो यह पोशाक ही बंधन और अड़चन बन जाती है। बाज़ार में खरबूजे बेचने आई एक औरत कपड़े में मुँह छिपाए सिर को घुटनों पर रखे फफक-फफककर रो रही थी। पड़ोस के लोग उसे घृणा की नज़रों से देखते हैं और उसे बुरा-भला कहते हैं। पास-पड़ोस की दुकानों से पूछने पर पता चलता है कि उसका तेईस बरस का लड़का परसों सुबह साँप के डसने से मर गया था। जो कुछ घर में था , सब उसे विदा करने में चला गया था। घर में उसकी बहू और पोते भूख से बिल-बिला रहे थे। इसलिए वह बेबस होकर खरबूज़े बेचने आई थी ताकि उन्हें कुछ खिला सके ; परंतु सब उसकी निंदा कर रहे थे , इसलिए वह रो रही थी। लेखक ने उसके दुख की तुलना अपने पड़ोस के एक संभ्रांत महिला के दुख से करने लगता है जिसके दुख से शहर भर के लोगों के मन उस पुत्र-शोक से द्रवित हो उठे थे। लेखक सोचता चला जा रहा था कि शोक करने, ग़म मनाने के लिए भी सहूलियत चाहिए और दु:खी होने का भी एक अधिकार होता है।

लेखक परिचय

यशपाल

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