Hindi, asked by rt987369, 7 hours ago

दुःख की पिछली रजनी बीच,
विकसता सुख का नवल प्रभात;
एक परदा यह झीना नील,
छिपाए है जिसमें सुख गात।
जिसे तुम समझे हो अभिशाप,
जगत की ज्वालाओं का मूल ka arth explaine ​

Answers

Answered by ky161943
1

Answer:

ली रजनी बीच,

विकसता सुख का नवल प्रभात;

एक परदा यह झीना नील,

छिपाए है जिसमें सुख गात।

जिसे तुम समझे हो अभिशाप,

जगत की ज्वालाओं का

Explanation:

fghhj

Answered by shishir303
2

दुःख की पिछली रजनी बीच,

विकसता सुख का नवल प्रभात;

एक परदा यह झीना नील,

छिपाए है जिसमें सुख गात।

जिसे तुम समझे हो अभिशाप,

जगत की ज्वालाओं का मूल

जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘कामायनी’ कविता की पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है।

भावार्थ :  कवि कहते हैं कि दुख की बीती हुई रात के बीज मुझे एक आगामी सुख की नई सुबह की अनुभूति हो रही है। मुझे एक पतला नीला सा परदा दिखाई दे रहा है, जिसके उस पार सुख है के मंगल गीत फूट रहे हैं। जिसे हम अभी तक अभिशाप वो ही शायद इस संसार में सारे दुखों की जड़ है।

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