दुख में हार न मानो
र खड़ा था, दुखियों के द्वार पर तू।
बाट जोहता था, तेरी किसी चमन में।।
किसी के आंसू, मेरे लिए बहा तू।
व लगा था मेरी, तब मान और धन में।।
जा बजाकर, मैं था तुझे रिझाता।
लगा हुआ था, पतितों के संगठन में।।
गरे हुओ केतु बीच में खड़ा था।
स्वर्ग देखता था. झुकता कहा चरण में।।
महार मानू, सुख में तुझे न भूलूँ।
सा प्रभाव भर दे, मेरे अधीर मन में।।
इयों दुखों का, इतिहास ही सुयश है।
झको समर्थ कर तू. बस कष्ट के सहन में।।
ज-लताओं और झाड़ियों से घिरा स्थल, बाट-इंतजार करना, चमन-बारा, पतित-अभाव में जीने वाला,
ललित किशोर लोहिमी Vyakkhya karo
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mera bhi answer per thanks kar dana
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