देखता हूँ मैं स्वयंवर हो रहा है, प्रकृति का अनुराग अंचल हिल रहा है। इन पक्तियों में प्रकृति के कि। दृश्य की ओर संकेत किया गया ह?
Answers
देख आया चंद्र गहना
देखता हूँ दृश्य अब मैं
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।
कवि एक गाँव से लौट रहे हैं जिसका नाम है चाँद गहना। लौटते समय कवि एक खेत की मेड़ पर अकेले बैठकर गाँव के सौंदर्य को निहार रहा है। आगे की पंक्तियों में ज्यादातर पौधों की तुलना अलग अलग वेशभूषा वाले आदमियों से की गई है।
एक बीते के बराबर
ये हरा ठिगना चना
बांधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का
सजकर खड़ा है।
चने का पौधा ऐसा लग रहा है जैसे एक ठिगना सा आदमी अपने सर पर छोटे से गुलाबी फूल की पगड़ी बांधकर सज धजकर खड़ा है।
पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली
देह की पतली, कमर की है लचीली
नीले फूले फूल को सर पर चढ़ा कर
कह रही, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको।
अक्सर चने के खेत में ही तीसी या अलसी के बीज भी बो दिये जाते हैं। अलसी ऐसे लग रही है जैसे चने की बगल में हठ कर के खड़ी हो गई हो। अपनी कामिनी काया और लचीली कमर के साथ उसने बालों में नीले फूल लगा रखे हैं। जैसे ये कह रही हो कि जो भी उस फूल को छुएगा उसे ही उसका दिल मिलेगा।
और सरसों की न पूछो
हो गयी सबसे सयानी,
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह मंडप में पधारी
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
देखता हूँ मैं, स्वयंवर हो रहा है
प्रकृति का अनुराग अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
सरसों तो लगता है सबसे बड़ी हो गई है। वह इतनी बड़ी हो गई है कि उसने अपने हाथ पीले करवा लिए हैं और विवाह मंडप में बैठ गई है। ऐसा लग रहा है कि होली के गीत गाता हुआ फागुन का महीना भी उस ब्याह में शामिल हो रहा है। इस स्वयंवर में प्रकृति अपने प्यार का आँचल हिला रही है।
हालांकि यह निर्जन भूमि है, लेकिन लोगों की भीड़ भाड़ वाले शहर से कहीं ज्यादा प्रेम यहाँ देखने को मिल रहा है।