देखते देखा मुझे तो एक बार,
उस भवन की ओर देखा, छिन्न तार ।
देख कर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से,
जो मार खा रोयी नहीं।
सजा सहज सितार
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह काँपी सुधर
दुलक माथे से गिरे सीकर
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -
'मैं तोड़ती पत्थर'।
bhaw bataye
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Great
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bhaw yeah h ki ye wah aapne ko krte huaa apne bawish ke bare me klpna krti h
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