दो लोगों के बीच तुलना क्यों नहीं करनी चाहिए
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जब हम अपनी तुलना दूसरों से करते हैं तो हमारे मन में जो भाव आते हैं वह हमारे व्यक्तित्व के विकास में बाधक होते हैं। जैसे, जब हम अपनी तुलना किसी अमीर आदमी से करते हैं तो हमें अपने गरीब होने का एहसास होता है इसी तरह जब हम अपनी तुलना किसी ग़रीब आदमी से करते हैं तो हम में अपनी अमीरी का घमंड आता है।
जब हम अपनी तुलना दूसरों से करते हैं तो हमारे मन में जो भाव आते हैं वह हमारे व्यक्तित्व के विकास में बाधक होते हैं। जैसे, जब हम अपनी तुलना किसी अमीर आदमी से करते हैं तो हमें अपने गरीब होने का एहसास होता है इसी तरह जब हम अपनी तुलना किसी ग़रीब आदमी से करते हैं तो हम में अपनी अमीरी का घमंड आता है। यह दोनों बातें सही नहीं हैं। हमें हमारा जीवन सम भाव से जीना चाहिए। बच्चों के बीच तुलना करने से उनमें हिन भावना आती है, उनका विकास अवरूद्ध हो जाता है। इस संदर्भ में मैं अपना उदाहरण देना चाहूंगी। बचपन में मेरा रंग मेरे भाई बहनों की तुलना में सांवला था, अब नहीं है। इस कारण बचपन से ही मैंने अपने माता पिता से मिलने जुलने वाले लोगों को अपनी शादी की फ़िक्र करते हुए देखा। मुझे बुरा लगता था। जब मैं बड़ी हुई तो लोगों को जवाब देने के उद्देश्य से अपने को हर तरह से निखारने का प्रयास शुरू किया और अंततः सफल भी हुई। बोलने वालों का मुंह बंद हो गया। अतः हमें हमारी कमियों को अपने को बेहतर बनाने का एक अवसर के रूप में लेना चाहिए न कि दूसरों से तुलना करना चाहिए। हम सभी में कुछ न कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे, मछली को तैरना आता है, पक्षियों को उड़ना आता है, कोई व्यक्ति खेलने में अच्छा होता है तो कोई व्यक्ति अच्छा नृत्य करता है। हममें जो विशेषता है हमें उन्हें उभारना चाहिए। अपने से ज्यादा सफल लोगों से प्रेरणा लेना अच्छा है किन्तु तुलना कर के अपने व्यक्तित्व को कुंठित होने से बचाने का प्रयास भी करना चाहिए अर्थात अपनी तुलना दूसरों से नहीं करना चाहिए।