दिल का विवेक और दिमाक का विवेक के बारे में 600 वर्ड्स का निबन्द लिखिए केवल हिंदी
Answers
दिल और दिमाग भले ही शरीर के दो अलग अलग स्थान पर रहते हो। मगर दिल और दिमाग का विवेक हमारे बहुत काम आता है। दिल और दिमाग एक दूसरे के पूरक हैं। दिल को हम दिमाग से अलग करके कुछ सोच ही नहीं सकते हैं।
दूसरे शब्दों में,दिल न केवल मस्तिष्क के अनुरूप है, बल्कि मस्तिष्क दिल से प्रतिक्रिया देता है। तनावपूर्ण या नकारात्मक भावनाओं के दौरान मस्तिष्क में दिल का इनपुट भी मस्तिष्क की भावनात्मक प्रक्रियाओं पर गहरा असर डालता है-वास्तव में तनाव के भावनात्मक अनुभव को मजबूत करने के लिए सेवा प्रदान करता है दिल।
दिल और दिमाग की जंग में दिमाग ही जीत जाता है।यदि आप मेरे जैसे हैं, तो संभवतः आपको अपने जीवन में निर्णय लेने के लिए सभी प्रकार की सलाह मिल गई है-- " आप अपने दिल को सुनो।"
अपने दिमाग का प्रयोग तर्कसंगत निर्णय लेने में करें। विवादित बयानों के लिए दिमाग की जरूरत होती है। वहां दिल के निर्णय की कोई महत्व नहीं रहती है।
इसके अलावा आपके जीवन से जुड़े किसी भी फैसले के लिए आपको अपने दिल और दिमाग दोनों से निर्णय लेना चाहिए।
याद रखें दिल के निर्णय को दिमाग पर और दिमाग के निर्णय को दिल पर हावी नहीं होने देना है। फैसले ऐसे लिजिए जिससे की आपको कोई तकलीफ़ न हो।
_______________________________
एक बुद्धिमता दिल की होती है और एक दिमाग की | हम कई बार जहां दिमाग का प्रयोग करना होता है वह दिल का प्रयोग कर लेते हैं और जहां दिल का प्रयोग करना होता है वह दिमाग का प्रयोग कर लेते हैं | इन दोनों परिस्थितियों में अगर हम गलत फैसले लेते हैं तो हमें पछताना पड़ता है |
जब भी हम ने अपने दिमाग से लेते हैं तो वह निर्णय लेने के पीछे कहीं ना कहीं हमारा स्वार्थ अवश्य होता है | परंतु जब भी हम अपने दिल से निर्णय लेते हैं तो उसमें हमारा स्वार्थ नहीं होता, है हम हमेशा अगले व्यक्ति की सहायता करने का ही सोचते है |
अगर हम तनाव की स्थिति में होते है, तो हम अपनी गहराई से सोचने की क्षमता को देते हैं उसी समय अगर हमें कोई निर्णय लेना हो तो वह निर्णय हमारे दिमाग से लिया जाता है |हम किसी विवाद के समय दिल से सोचते हैं तो वह हमारी सबसे बड़ी भूल होगी यह हमारे लिए ठीक रहेगा कि विवाद के समय हम दिमाग का प्रयोग करें |
सही निर्णय लेने के लिए हमें दिल और दिमाग दोनों का प्रयोग करना होगा अगर हम पहले अपने दिल से निर्णय लेकर फिर उस निर्णय के बारे में दिमाग से सोचें तो हमसे अपने पूरे जीवन में भी गलती नहीं होगी | जिस वक्त दिल दिमाग पर या फिर दिमाग दिल पर हावी हो जाए उसी समय ही तो हम से गलती हो जाती है |
अतः हमें परिस्थितियों के अनुसार सोचना पड़ता है कि दिल से सोचें या दिमाग से लेकिन इन सबके बाद भी सत्य है कि जो बातें हम दिल से लेते हैं उनकी मान्यता दिमाग से लिए जाने वाले निर्णयों से अधिक होती है |