दिल्ली की _______ मै वर्षा ऋतु मै बाढ़ आती है
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Explanation:
सामान्यतः बाढ़ तब आती है जब नदी, झील अथवा तालाब का जल तट से ऊपर होकर बहने लगता है। यह अधिक वर्षा अथवा उपयुक्त जल निकास की व्यवस्था के अभाव के कारण होता है। किनारों के ऊपर से नदी जल का बहाव नदी-तल के भर जाने या प्रवाह में बाधा के कारण भी होता है। नदी, सरिता या जलधाराओं के मिलन-स्थल (संगम) पर भी बाढ़ की शंका बनी रहती है। गंगा तथा गोदावरी नदियों के बहाव क्षेत्र में ऐसा भी देखने में आता है कि मुख्य नदी का जलस्तर ऊंचा हो जाता है और सहायक नदियों से होकर आसपास में फैलकर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करता है।हमारे देश में बरसात के मौसम में प्रतिवर्ष कहीं न कहीं बाढ़ आती रहती है। अगर बाढ़ नहीं आई तो सूखा चला आता है। इससे भी अधिक विडंबना पूर्ण स्थिति यह है कि एक ही इलाके को एक ही साल में बारी-बारी से सूखे तथा बाढ़ दोनों का दारुण दुःख भुगतना पड़ता है। यह मानसूनी बरसात की विशेषता है कि कहीं बाढ़ और कहीं सूखे का चक्र चलता रहता है।
अतिशयताओं के देश भारत में मौसम की सामान्य स्थितियों में भी काफी भिन्नताएं पाई जाती हैं। उदाहरण के तौर पर पूर्वोत्तर भारत में स्थित चेरापूँजी में सालाना वर्षा का औसत 11 (ग्यारह) मीटर के करीब है, जबकि पश्चिमोत्तर क्षेत्र में स्थित जैसलमेर में जलवर्षा का औसत केवल 0.2 मीटर का है। लेकिन इस औसत में भी प्रति वर्ष अंतर आता रहता है, जिससे मौसम की असामान्य स्थिति उत्पन्न होती है। बाढ़ और सूखा दोनों मौसम की असामान्य स्थितियाँ हैं, जिनके कारणों पर अब तक वैज्ञानिक नियंत्रण कर पाने में समर्थ नहीं हो सके हैं। फिर भी प्रयास जारी है कि इनके प्रभाव को कम करके जन-धन की हानि को रोका जा सके।
बाढ़ की स्थिति
मौसम वैज्ञानिकों ने बाढ़ की स्थिति को इस प्रकार से परिभाषित किया है -
किसी नदी में जलप्रवाह का अपेक्षाकृत ऊंचा स्तर अथवा वैसी स्थिति जो सामान्य से अत्यधिक हो जिससे कि निचली भूमि जलमग्न हो जाए। वह जलराशि जो तेज गति से उफनति हुई उस भूमि पर फैल जाए जहां सामान्यतया पानी की धारा नहीं पहुँचती थी। यही बाढ़ की स्थिति है।
प्रायः यह देखा जाता है कि वर्षा अथवा नदी जल के बिखराव के कारण भी बाढ़ आ जाती है, जबकि जल उसी गति से बाहर नहीं निकल पाता, जितनी गति से उसके निकलने की आवश्यकता होती है। जल निकास नालियों की अपर्याप्त क्षमता के कारण तटबंधों के पीछे जल का जमाव होना भी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करता है।
उल्लेखनीय है कि किसी नदी के जलग्रहण क्षेत्र या आवाह क्षेत्र में अचानक अधिक वर्षा के कारण भी बाढ़ आती है। वर्षा की मात्रा तथा जलग्रहण क्षेत्र की विशेषताओं के ऊपर ही बाढ़ की प्रकृति तथा आकार निर्भर करता है।
बाढ़ के कारण
सामान्यतः बाढ़ तब आती है जब नदी, झील अथवा तालाब का जल तट से ऊपर होकर बहने लगता है। यह अधिक वर्षा अथवा उपयुक्त जल निकास की व्यवस्था के अभाव के कारण होता है। किनारों के ऊपर से नदी जल का बहाव नदी-तल के भर जाने या प्रवाह में बाधा के कारण भी होता है। नदी, सरिता या जलधाराओं के मिलन-स्थल (संगम) पर भी बाढ़ की शंका बनी रहती है। गंगा तथा गोदावरी नदियों के बहाव क्षेत्र में ऐसा भी देखने में आता है कि मुख्य नदी का जलस्तर ऊंचा हो जाता है और सहायक नदियों से होकर आसपास में फैलकर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करता है।
पर्वतों से उतरकर मैदानी भागों में आने वाली नदियों में बरसात के समय बाढ़ की संभावनाएं अधिक रहती है। पर्वतों पर होने वाली अधिक जलवर्षा के प्रवाह को रुकने के लिए पेड़-पौधे या मिट्टी नहीं है तो वह अबाध गति से ढलानों पर बहती हुई नीचे मैदान में आकर बाढ़ लाती है। पहाड़ी ढालों पर वनों के रहने से पत्तियों के आच्छादन के कारण वर्षा-जल का बहाव तेज नहीं होता है और मिट्टी का कटाव भी कम होता है। किंतु वनों के काटे जाने से जलवर्षा के कारण पहाड़ी ढालों पर प्रवाह की गति तेज होती है मिट्टी का कटाव बढ़ता है, जिसके फलस्वरूप नदियों में बाढ़ आने लगती है।
भारत के बाढ़ वाले मैदानी भागों में भूमि के उचित उपयोग पर नियंत्रण की कमी और असंतुलित निर्माण कार्यों की वजह से जलप्रहाव बाधित होता है और बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है।
बाढ़ की चेतावनी
संभावित लक्षणों को परख कर यदि बाढ़ के आने की पूर्व सूचना समय रहते दिए जाने की समुचित व्यवस्था हो तो जन-धन के नुकसान से बचाव हो सकता है। यह संतोष की बात है कि मानसूनी बरसात के समय केंद्रीय जल आयोग के द्वारा भारत के विभिन्न बाढ़ क्षेत्रों में पूर्व-चेतावनी देने के लिए वैज्ञानिक प्रबंध किए गए हैं।
बाढ़ की चेतावनी देने के लिए विभिन्न नदी बेसिनों में जल प्रवाहमापी यंत्रों को लगाया गया है, साथ ही बेतार यंत्रों द्वारा स्थिति की नियमित सूचनाएं क्षेत्रीय तथा केंद्रीय मुख्यालयों को भेजी जाती है। इसके अलावा उत्तर भारत तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों के बाढ़ वाले इलाकों के लिए अलग से गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग नामक संगठन की स्थापना की गई है, जो बाढ़ संबंधी पूर्वानुमान देने का कार्य वैज्ञानिक ढंग से करता है।
सूखा या अनावृष्टि
भारी वर्षा से आई भयंकर बाढ़ के लिए नुकसान का पैगाम बनकर आती है। लेकिन अनावृष्टि से उत्पन्न सूखा और उसका प्रभाव अधिक दुःखदाई होता है। सूखे का अर्थ है - संभावित वर्षा से कम वर्षा, सामान्य वर्षा से 75 प्रतिशत या 50 प्रतिशत से कम वर्षा की स्थिति को अनावृष्टि कहा जाता है। अनावृष्टि की यह परिभाषा सटीक नहीं होते हुए भी पर्याप्त है। लेकिन यह भी ध्यान रखने की बात है कि फ़सलों के लिए वर्षा की कुल मात्रा के अलावा यह भी देखने की बात है कि वर्षा की कितनी मात्रा कितने अंतराल के बाद होती है। जरूरी नहीं कि वर्षा में मामूली-सी कमी या बढ़ोतरी का कृषि उत्पादकता से सीधा संबंध हो। इसलिए वांछनीय होगा कि संपूर्ण मौसम के दौरान होने वाली वर्षा के ऐसे सूचकांक तैयार किए जाएं जो कृषि उत्पादकता से जुड़े हों तथा जिनसे मिट्टी की नमी का भी पता चल सके।
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