दुलहनी गावहु मंगलचार,
हम घरि आयो हो राजा राम भरतार।
तन रति करि मै, मन रति करिहूँ पंचतत बराती।।
रामदेव मोरै पाहु. आये, मैं जोबन
में जोबन मेमाती
सरीर सरोवर बेदी
रामदेव संग भाँवरि लैहँ, धनि धनि भाग हमार।।
सुर तैतीतूं कौतिग आये, मुनिवर सहस अट्यासी।।
कहै कबीर हमै व्याहि चले हैं, पुरिष एक अबिनासी।।1।
।।
ब्रह्मा बेद
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Answer:
संदर्भ प्रसंग aur vyakhya
Answer:
कबीर दास
Explanation:
व्याख्या
कबीर दास जी कहते हैं कि हे सुहागिन नारियो । अब तुम विवाह के अवसर पर गाए जाने वाले मंगलमय गीत को गाओ क्योंकि आज मेरे घर में मेरे पति रूपी राजा राम अर्थात परमात्मा आए हैं । मेरा तन और मन दोनों ही उनके प्रेम या आसिक्त मैं लीन हो गए हैं । पाँचों तत्व - (पृथ्वी, आकाश, अग्नि, पानी व वायु) राजा राम के साथ बराती बन कर आए हैं ।
रामदेव अर्थात परमात्मा मेरे यहाँ पर अतिथि बन कर आए हैं और मैं अपने यौवन अर्थात उनकी भक्ति में मदमस्त हो गई हूँ। मैं अपने शरीर रूपी कुण्ड को विवाह की वेदी बना कर इस विवाह की परिक्रमाएं पूरी करूंगी। मेरा जीवन धन्य है अर्थात यह मेरा सौभाग्य है कि मेरा व परमात्मा का मिलन हो रहा है ।
मेरे व परमात्मा के इस विवाह अर्थात मिलन को देखने के लिए तैतीस करोड देवी देवता और अठ्यासी हजार मुनिजन यहाँ पर आए हैं । कबीर दास जी कहते हैं कि इस प्रकार मेरी आत्मा उस एक अविनाशी पुरूष अर्थात परमात्मा के साथ विवाह करके जा रही है ।
दुलहनी गावहु मंगलचार,
हम घरि आयो हो राजा राम भरतार।
तन रति करि मै,
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रामदेव मोरै पाहुने आये, मैं जोबन मैमाती।। सरीर सरोवर बेदी करिहूँ, बेदी करिहूँ, ब्रह्मा बेद ब्रह्मा बेद उचार।।
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