दुलहनी गावहु मंगलचार, हम घरि आयो हो राजा राम भरतार। तन रति करि मै, मन रति करिहूँ पंचतत बराती।। रामदेव मोरै पाहुने आये, मैं जोबन मैमाती।। सरीर सरोवर बेदी करिहूँ, बेदी करिहूँ, ब्रह्मा बेद ब्रह्मा बेद उचार।। रामदेव संग भाँवरि लैहूँ, धनि धनि भाग हमार।। सुर तैतीतूं कौतिग आये, मुनिवर सहस अठ्यासी।। कहै कबीर हमै व्याहि चले हैं, पुरिष एक अबिनासी।।1।।
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हम घरि आए हो राजा राम भरतार॥टेक॥ तन रत करि मैं मन रत करिहूँ, पंचतत्त बराती।
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