Hindi, asked by subhrajeet18, 5 months ago

दौलत पाय न कीजिए, सपने हू अभिमान।
चंचल जल दिन चारि को, ठाउँ न रहत निदान।।
ठाउँ न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे वचन सुनाय, विनय सबही की कीजै।।
कह 'गिरिधर कविराय', अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबही के दौलत।।

please write summary in it

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Answered by tripletruth3
9

Answer:

भावार्थ: कवि गिरिधर कहते हैं कि खाली धन-दौलत पाने के लिए ही कार्य मत करो और धन दौलत मिल भी जाए तो उसका अभिमान कभी मत करो। जिस तरह बहता हुआ जल चंचल होता है, वह कभी एक जगह स्थिर होकर नहीं ठहरता, उसी तरह आने वाला धन भी चंचल होता है, वह भी एक के पास हमेशा के लिये नही टिकता। यह दौलत आनी है, फिर जानी है, इसलिए जीवन में धन-दौलत कमाने के साथ साथ भगवान का भी नाम लो। अच्छे कार्य करो, मधुर वचन बोलो और सभी से प्रेम करो। कवि के कहना का तात्पर्य यह है कि धन-दौलत एक अस्थिर वस्तु है, लेकिन हमारा जो व्यवहार है वह अमूल्य है, अटूट है, वही सच्ची दौलत है।

Answered by crkavya123
1

Answer:

संदर्भ : यह कुंडलियां कवि गिरिधर ने लिखी है,  इन कुंडलियों के माध्यम से कवि ने नैतिक शिक्षा देने की कोशिश की है।

दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान।

चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान॥

ठाउं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।

मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥

कह ‘गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।

पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबही के दौलत॥

भावार्थ : कवि गिरिधर केवल अर्थहीन धन के लिए काम करने के विरुद्ध सलाह देते हैं, और यदि आप करते भी हैं, तो वे उस पर गर्व करने के विरुद्ध सलाह देते हैं। आने वाला धन भी अस्थिर होता है और किसी के पास अधिक समय तक नहीं रहता, ठीक उसी तरह जैसे बहता हुआ पानी चंचल होता है और कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता। इस संसार में धन जमा करने के साथ-साथ भगवान का नाम भी लो क्योंकि धन आना और फिर जाना भी है। अच्छे काम करो, अच्छी बातें करो, और हर कोई तुम्हारी प्रशंसा करेगा। लेखक के अनुसार, पैसा अविश्वसनीय है, लेकिन जो वास्तव में मूल्यवान है वह यह है कि हम कैसे व्यवहार करते हैं क्योंकि यह अमूल्य और असीम है।

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