दिमागी लड़ाई का सारांश
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दिमागी लड़ाई कहानी का सारांश...
एक दिन बगदाद के सुल्तान के दरबार में पड़ोसी राज्य के सुल्तान का एक दूत आया। उस दूत ने सुल्तान के सिंहासन के चारों ओर खड़िया से एक गोल घेरे वाली लकीर खींची और चलता बना। सारे दरबारी चक्कर में पड़ गये कि इसका मतलब क्या है। बादशाह ने भी सबसे पूछा कि इसका क्या मतलब है, किसी भी दरबारी के कुछ समझ में नहीं आया और वे कुछ नहीं बता सके। एक दरबारी ने होजा का नाम सुझाया। होजा बगदाद का एक प्रसिद्ध चतुर व्यक्ति था। बादशाह ने होजा को बुलाने का आदेश दिया। बादशाह के सैनिकों ने होजा को ढूंढा और उसे सारी बात बता कर कहा कि बादशाह ने बुलाया है। तब होजा ने सारी बात समझने के बाद कुछ सामान अपने साथ रखा और दरबार कोई ओर चल दिया।
दरबार में उसने आकर उसने सिंहासन के चारों तरफ के की लकीर को देखा। उसी समय पड़ोसी राज्य का वो दूत दोबारा फिर आ गया। उसे देखकर होजा ने उसके सामने अपने साथ लाए खिलौने रख दिए। ये देखकर दूत ने अपनी जेब से कुछ चावल के दाने निकाल कर चल चारों तरफ बिखेर दिये। होजा ने भी अपने साथ लाया एक मुर्गा निकाला और उस मुर्गे ने सारे दाने चुग लिये। ये देखकर दूत घबराकर भाग गया।
बादशाह ने जब होजा से सारी बातों का मतलब पूछा तो उसने बताया कि दूत ने जो सिंहासन के चारों ओर लकीर खींची थी, उसका मतलब क्या कि उनका सुल्तान आपके राज्य पर हमला करके उसकी घेराबंदी करने वाला है। मैंने उस दूत के सामने खिलौने रख कर ये बताया कि हमारे राज्य को घेरना बच्चों का खेल नहीं। तुम्हारा काम इन खिलौनों से खेलना है, इनसे खेलो। तो जवाब में उसने चावल बिखेरकर ये बताना चाहा कि उनके पास बहुत से सैनिक हैं। तो मैने मुर्गे द्वारा सारे चावल के दाने चुगवा कर ये बताया कि उसके सारे सैनिकों हम लोगों यूँ चट कर जायेंगे, कोई जिंदा नही बचेगा।
होजा के बातें सुनकर बादशाह बेहद खुश हुआ। उसने होजा को अपना वजीर बनाने का निमंत्रण दिया लेकिन होजा उसे नही कबूला और अपने घर आकर आराम करने लगा।
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