दो मित्र भारत वर्ष में गंगा-प्रदूषण के बारे में बात कर रहे हैं। उनके आपसी संवाद के बारे में लिखिए।
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हिमालय के उतुंग शिखरों से कल-कल करके बहती गंगा की धाराएँ सदियों से हमारी सामाजिक-आर्थिक-भौगोलिक तथा सांस्कृतिक पहचान रही है। गंगा भारत के एक बड़े भू-भाग को हरियाली तथा खुशहाली से महकाती है इसलिये यह जीवनदायिनी कही जाती है।
लगभग 2525 कि.मी. लम्बे सफर में गंगा के किनारे करोड़ों लोग रहते हैं जिनके भरण-पोषण में गंगा प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गंगा सदियों से भारत के लिये धार्मिक आस्था का प्रतीक भी रही है तथा धर्मशास्त्रों ने इसे मोक्षदायिनी बताया है।
साल भर पानी से लबालब भरी रहने वाली गंगा न जाने कितने जीव-जन्तुओं तथा पेड़-पौधों को जीवन देती है। मगर आज औद्योगीकरण तथा उपभोक्तावादी संस्कृति के बढ़ने के साथ-साथ गंगा के अस्तित्त्व पर भी संकट के बादल मँडरा रहे हैं।
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