दुनिमा
का अंधेरा टूर करने के लिए हमें का करना होना
व.
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जब दुनिया में आई तो चारों अोर अंधेरा था। सारे रंग बेकार थे। बड़ी हुई तो तितली देखी न भौंरे। पानी की शीतलता महसूस की लेकिन देख न सकी। हिम्मत हार चहारदीवारी में बंद होने की बजाए मन की आंखों से हाथों में स्लेट-किताब थामी और मुश्किलों पर विजय पाई। अब खुद सैकड़ों लोगों के जीवन में उजाला कर रही हैं।
ये हैं रतलाम की 32 वर्षीय दृष्टिहीन कोमल शर्मा। वे रतलाम से 25 किमी दूर पिपलौदा ब्लॉक के हसनपालिया प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका हैं। उनके स्कूल में पढ़ाई का स्तर इतना ऊंचा है कि वे निजी स्कूल संचालकों की आंख की किरकिरी बनी हुई हैं। लोग निजी स्कूलों से बच्चों को निकालकर सरकारी स्कूल में प्रवेश करा रहे हैं। कोमल और उनका स्कूल शिक्षकों के लिए रोल मॉडल बना हुआ है। सामान्य ज्ञान में बच्चों के सामने शायद ही किसी सरकारी स्कूल के बच्चे ठहर सकें। कई संस्थाएं उनका सम्मान कर चुकी हैं।
शिक्षक बनने की तमन्ना थी : कोमल बचपन से शिक्षक बनना चाहती थीं। मां पुष्पा शर्मा ने बताया वह स्कूल से आने के बाद साड़ी पहनकर टीचर बन जाती। पहले हम मायूस हुए, लड़की और उस पर दृष्टिहीन, कैसे जीवन बीतेगा। किसी तरह उसे पैरों पर खड़ा करना था। तपस्या सफल हुई। आज बेटी 10 लोगों के परिवार को पाल रही है। मैं यही कहती हूं दोनों आंखें होते हुए भी तेरी बराबरी नहीं कर पाई। कोमल तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी है।