दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला। समझ ही में न आता था, यह कैसा स्वामी है। इससे तो गया फिर भी अच्छा था। यहाँ कई भैंसें थीं, कई बकरियाँ, कई घोड़े, कई गधे; पर किसी के सामने चारा न था, सब ज़मीन पर मुरदों की तरह पड़े थे। कई तो इतने कमज़ोर हो गए थे कि खड़े भी न हो सकते थे। सारा दिन दोनों मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए ताकते रहे; पर कोई चारा लेकर आता न दिखाई दिया। तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती?
रात को भी जब कुछ भोजन न मिला, तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला
दहक उठी। मोती से बोला-अब तो नहीं रहा जाता मोती!
क - हीरा - मोती कहाँ थे? दोनों को गया कब अच्छा लगा |
ख - bhuk लगने पर हीरा - मोती ने क्या किया तथा क्यों?
3) vhah कौन - कौन से जानवर कैद थे ।
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क) हीरा- मोती कांजीहोस में थे। जब उन दोनों को कांजीहोस में खाने को कुछ ना मिला तब उन्हें गया की याद आई जो उन्हें कम से कम सूखा चारा तो देता था। अब उन्हें गया भी बहुत अच्छा लग रहा था।
ख) भूक लगने पर हीरा और मोती ने अपनी भूक मिटाने के लिए दीवार की नमकीन मिट्टी चाटी।
ग) वहाँ भैंसें, बकरियाँ, घोड़े और गधे कैद थे।
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Explanation:
गद्यांश में किन दो मित्रों का वर्णन किया गया है
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