Hindi, asked by arjunbhagat14022016, 6 months ago

दिन प्रतिदिन सभ्य होते समाज में कबीर के पद अचानक प्रासंगिक हो जाते है क्यूं कहा ?

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Answered by deepbukkal
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कबीर पंद्रहवीं शताब्दी के संत थे, भक्तिकाल के कवियों मे वह प्रमुख रहस्यवादी कवि थे, उनके दोहे सुनने वाले लिख लेते थे या कंठस्त कर लेते थे क्योंकि कबीर अनपढ़ थे, पर ज्ञान का भंडार थे। उन्होने ख़ुद कहा कि ‘’मसि कागज़ गह्यो नहीं, कलम नहीं छुओ हाथ।‘’

सिख धर्म पर उनका प्रभाव स्पष्ट झलकता है।उनका पालन पोषण एक मुस्लिम जुलाहा परिवार मे हुआ था पर उन्होने अपना गुरू रामानंद को माना। जन्म स्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद है परन्तु अधिकतर विद्वान इनका जन्म काशी में ही मानते हैं,जिसकी पुष्टि स्वयं कबीर का यह कथन भी करता है “काशी में परगट भये ,रामानंद चेताये ”

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,

आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।

आज जब पूरे विश्वमे धर्म के नाम पर आतंकवाद फैला हुआ है तब कबीर के दोहों को याद करना उन्हे जीवन मे उतारना बहुत प्रासंगिक लगता है। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाँडों के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्त्ति, रोज़ा, ईद, मसजिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानतेथे।कबीर के समय मे हिंदू जनता पर धर्मातंरण का दबाव था उन्होने अपने दोहों मे दोनो धर्मो के कर्मकाँडों का विरोध किया और ईश्वर केवल एक है इस बात को तरह तरह से लोगों को सहज भाषा मे समझाया।उन्होने ज्ञान से ज़्यादा महत्व प्रेम को दिया।-

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

निम्नलिखित दोनो दो हों मे कबीर ने हिन्दू और इस्लाम दोनो धर्मोंके खोखलेपन को बताया है।मूर्ति पूजा को निरर्थक मानते हुए वो कहते हैं कि इससे अच्छी तो चक्की है, कि कुछ काम तो आती है।मुल्ला के बांग लगाने का भी वह उपहास करते हैं।ये दोहे आज इसिलिये बहुत प्रांसंगिक हो गये हैं क्योंकि आज धर्मों मे दिखावा बढ़ता जा रहा है,एक दूसरे कोनीचा दिखाने की होड सी लगी हई है।

पाहन पूजे हरि मिलैं, तो मैं पूजौं पहार।

वाते तो चाकी भली, पीसी खाय संसार

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