दोन सबन को लखत है, दीनहि लखै न कोय।
जो रहोम दोनहि लखै. दीनबन्ध सम होय।।विचार विस्तार
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गरीब की दृष्टि सब पर पड़ती है, पर ग़रीब को कोई नहीं देखता। जो ग़रीब को प्रेम से देखता है, उसकी मदद करता है, वह दीनबन्धु भगवान के समान हो जाता है।
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