दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये।।
विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ।।6।।
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दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये।
विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा।।
भावार्थ — व्यक्ति को कभी अपनी दानशीलता पर, अपने तप, अपनी वीरता पर, अपनी बुद्धिमत्ता पर या अपनी नीतिपरकता पर अहंकार नही करना चाहिये क्योंकि इस संसार में एक से एक बढ़कर दानवीर हैं, तपस्वी हैं, शूरवीर हैं, विज्ञानी हैं, बुद्धिमान हैं और नीतिज्ञ है। ऐसे रत्नों से ये संसार भरा पड़ा है।
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