"दुनिया की हर एक चीज़ हमें शिक्षा देती है। एक दिन मैं धूप में घूम रहा था। चारों तरफ बड़े-बड़े हरे वृक्ष दिखाई दे रहे थे। मैं सोचने लगा कि 'ऊपर से इतनी कड़ी धूप पड़ रही है, फिर यह वृक्ष हरे कैसे हैं?' वे वृक्ष मेरे गुरु बन गए। मेरी समझ में आ गया कि जो मेरे ऊपर से इतने हरे-भरे दिखते हैं, उनकी जड़ें ज़मीन में गहराई तक पहुंची है और वहां से उन्हें पानी मिल रहा है। इस तरह अंदर से पानी और ऊपर से धूप, दोनो की कृपा से यह सुंदर हरा रंग उन्हें मिला है। इसी तरह हमें अंदर से भक्ति का पानी और बाहर से तपश्चर्या की धूप मिले न, तो हम भी पेड़ों जैसे हरे-भरे हो जाएँ। हम ज्ञान की दृष्टि से परिश्रम को नहीं देखते, इसलिए उसमें तकलीफ़ मालूम होती है। ऐसे लोगों को आरोग्य और ज्ञान कभी मिलनेवाला नहीं।"
प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
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शिक्षा
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