दुनिया की सारी गंदगी के बीच दुनिया की सारी खुशबू रहते हैं हाथ खुशबु रचते है हाथ
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ok
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इसे .
दूसरों के जीवन को महकाने वाले स्वयं बदबू व गंदगी के बीच जीवन व्यतीत करने को विवश हैं। रचते हैं हाथ' नामक कविता में कवि ने गंदी गलियों, बदबू से फटते इलाकों के बीच रहने वाले लोगों द्वारा सुगंधित अगरबतियाँ बनाकर वातावरण को पवित्र, स्वच्छ एवं सुगंधित बनाने वाले कटे, फटे, ज़ख्मी हाथों की प्रशंसा की है।
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again try mujhe kuchh samajh nii aaya isme
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