दोपहर का भोजन शीर्षक इंद्रियों से पूर्णतया सार्थक है
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: पूरी कहानी में दोपहर के भोजन के समय को दर्शाया गया है। रामचंद्र तथा मोहन का दोपहर में आना तथा फिर चले जाना। पिताजी का विश्राम करना आदि बातें दोपहर के समय को सार्थक कर देती हैं।
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