दोपहर का भोजन शीर्षक किन दृष्टि सार्थक है
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इस कहानी का कथानक दोपहर के भोजन से संबंधित है। कहानी में सिद्धेश्वरी ने दोपहर का भोजन तैयार कर लिया है और वह परिवार के सदस्यों को भोजन परोसने के लिए बैठी है। भोजन करने के लिए सबसे पहले सबसे बड़ा बेटा रामचंद्र आता है और अनमना-सा भोजन करके चला जाता है। इसके बाद मँझला बेटा मोहन आता है और अंत में मुँशीजी भोजन करते हैं। पूरी कहानी में घटनाएँ तथा सभी पात्रों के संवाद दोपहर के भोजन से संबंधित हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि ‘दोपहर का भोजन शीर्षक हर दृष्टि से पूर्णतः सार्थक है
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