दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट ।
पूरा किया बिसाहुणाँ, बहुरि न आवौं हट्ट।।3।।
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दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट ।
पूरा किया बिसाहुणाँ, बहुरि न आवौं हट्ट।।3।।
कबीर जी इस दोहे से समझाना चाहते है कि गुरु के ज्ञान को दिपक कहा है , यह संसार एक बाजार की तरह है | मैंने अपने गुरु से पुन: इस जन्म-मरणरूपी संसार के बाज़ार से छुटकारा पा लिया है | मेरे गुरु ने मुझे इस संसार रूपी के बंधन से छुटने का ज्ञान प्राप्त हो चूका है | गुरु एक मात्र सहारा है , जो हमें इस बंधन से छुटकारा दे सकते है |
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