दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट।
पूरा किया बिसाहुणाँ, बहुरि न आवौं हट्ट।।
(i) उपर्युक्त पद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
पद्यांश के कवि एवं पाठ का नाम लिखिए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) गुरु ने भक्त को किस प्रकार का दीपक दिया है?
(iv) सद्गुरु द्वारा दिये गये दीपक में किस प्रकार का तेल भरा है?
(v) प्रस्तुत दोहे में कौन-सा अलंकार है:
Answers
Answer:
अर्थ सहित व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि अब मुझे पुन: इस जन्म-मरणरूपी संसार के बाज़ार में आने की आवश्यक्ता नहीं है क्योंकि मुझे सद्गुरु से ज्ञान प्राप्त हो चुका है।
Answer:
प्रस्तुत पद्यांश "दीपक दीया तेल भरि‘" का संदर्भ , प्रसंग , व्याख्या , काव्य सौंदर्य तथा शब्दार्थ इस आर्टिकल में लिखा गया है। जो की कबीरदास जी की रचना है , ये छात्रों के लिए काफी मददगार होने वाला है। खास बात यह है कि अगर आप यूपी बोर्ड के 11वीं में हो तो हिंदी के "काव्य" पाठ 1 में "साखी" शीर्षक से है।
Explanation:
दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट।
पूरा किया बिसाहुणाँ, बहुरि न आवौं हट्ट॥
सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी के "काव्य खंड" में ‘साखी’ शीर्षक से उद्धृत है, जो साखी ग्रंथ से लिया गया है। जिसके रचयिता कबीरदास जी हैं।
प्रसंग - प्रस्तुत दोहे में कबीरदास जी ने भक्ति पर बल देते हुए कहा कि इस योनि में भक्ति कर लेने से जीवन - मरण चक्र से मुक्ति मिल जाएगी।
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्ति में कबीरदास जी कहते हैं कि सतगुरु ने साधक को ज्ञान रूपी दीपक देकर उसमे भक्ति रूपी तेल भर दिया है।
कबीर फिर से आगे कहते हैं कि साधक ने अपना सारा खरीद - फरोख्त कर लिया है तो अब इस बाजार में फिर से लौटकर नहीं आयेगा। अर्थात इस माया में नहीं पड़ेगा। कबीर ने बाजार इस संसार को कहा है।
भाव यह है की साधक ने ज्ञानरूपी दीपक प्राप्त कर लिया है। जिसकी बाती कभी खत्म नहीं होने वाली है। अर्थात भक्ति रूपी बाती कभी भी ख़त्म नहीं होगी। अब जब सारा ज्ञान मिल ही गया है तो कौन फिर से बाजार (संसार) में आना चाहेगा। मतलब जिसने बाजार से संपूर्ण सौदा खरीद लिया हो, वह फिर से बाजार में नहीं आना चाहेगा।