दुर्गा पूजा के ऊपर निबंध
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दुर्गा पूजा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार माना जाता है। भगवान राम ने रावण को मारने से पहले देवी दुर्गा के आशीर्वाद के लिए उनकी पूजा-अर्चना की थी। इस अवसर पर देवी दुर्गा की नौ दिनों तक पूजा की जाती है। और दसवें दिन उनकी प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है।
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Explanation:
इस पर्व-त्योहार को मनाने का आधार पौराणिक है। इस प्रकार इस त्योहार का सम्बंध देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक राक्षस के बध की कथा से है। एक पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नामक राक्षस के अत्याचारों से पीड़ित होने से चारो और हा-हाकार मच गया। इंद्रलोक और देवलोक में तो त्राहि-त्राहि मच गई। महिषासुर के बढ़ते हुए अत्याचार से देवगण इतना कांप उठा की उन्हें भगवान विष्णु की शरण मे जाने के सिवाय और कुछ नहीं सूझा, देवताओं की दयनीय दशा देखकर भगवान विष्णु उन्हें लेकर ब्रहा जी के पास गए। वहां से देवताओं सहित भगवान विष्णु और ब्रहमा जी भगवान शंकर के पास गए। महिषासुर के अत्याचार से दुःखी देवताओं सहित तीनो भगवानो की क्रोधग्नि से एक अपूर्व ओर अदभुत शक्ति का उदय हुआ। वह शक्ति परम् शक्तिशाली देवी के रूप में थी। वह देवी सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र सर अलंकृत सम्पन्न थी। उस देवी का नाम माता दुर्गा रखा गया। माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक लगातार महिषासुर से युद्ध की और द्सवें दिन उस पर विजय प्राप्त की। इससे देवताओं सहित तीनो भगवान हर्षित हो उठे। उसी समय से इस तिथि को महिषासुर मर्दनी माँ दुर्गा के भक्त-श्रद्धालु नवरात्रि के उपवास-व्रत रखा करते है। माँ दुर्गा की पूजा विविध से करते हुए दशमी (दशवे दिन) को दशहरा मानते है।बंगाल में उत्तरी-पूर्वी भारत के समान भगवान श्रीराम की याद में दशहरा का त्योहार पर्व नही मनाया जाता है। यहां तो महाशक्ति दुर्गा के सम्मान और श्रद्धा में दशहरा का पर्व-त्योहार मनाया जाता है। बंगाल वासियो की यह मुख्य धारणा है, कि इस दीन ही महाशक्ति दुर्गा केलाश पर्वत को प्रस्थान करती है। इसलिए यहाँ के लोग माँ दुर्गा की याद में रात-भर पूजा उपासना, अखण्ड पाठ और मन्त्र-जाप बड़े ही विशवास और दृढ़ निश्चय के साथ किया करते है