दुर्गम बर्फानी घाटी मे, शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर
अलख-नाभि से उठने वाले, निज के ही उम्मादक परिमल
के पीछे धावित हो होकर, तरल तरूण कस्तूरी मृग को
अपने पर चढ़ते देखा है, बादल को घिरते देखा है।
प्र019 - निम्नलिखित में से किसी एक गद्यांश की व्याख्या संदर्भ, प्रसंग एवं विशेष सहित
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अंक04
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दुर्गम बर्फानी घाटी मे, शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर
अलख-नाभि से उठने वाले, निज के ही उम्मादक परिमल
के पीछे धावित हो होकर, तरल तरूण कस्तूरी मृग
Explanation:
दुर्गम बर्फानी घाटी मे, शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर
अलख-नाभि से उठने वाले, निज के ही उम्मादक परिमल
के पीछे धावित हो होकर, तरल तरूण कस्तूरी मृग
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