Hindi, asked by nithwik6525, 2 months ago

दुर्गम बर्फानी घाटी में, शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई परअलख-नाभि से उठने वाले, निज के ही उम्मादक परिमलके पीछे धावित हो होकर, तरल तरूण कस्तूरी मृग कोअपने पर चढ़ते देखा है, बादल को घिरते देखा है।​

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Answered by shishir303
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दुर्गम बर्फानी घाटी में , शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर  

अलख नाभि से उठने वाले , निज के ही उन्मादक परिमल-

के पीछे धावित हो-होकर , तरल-तरुण कस्तूरी मृग को  

अपने पर चिढ़ते देखा है,  बादल को घिरते देखा है।

संदर्भ : ये पंक्तियां कवि ‘नागार्जुन’ द्वारा रचित कविता “बादल को घिरते देखा है” से ली गयीं है, इन पंक्तियों में कवि ने बादल के सौंदर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या :  कवि कहता है कि चारों तरफ बर्फीले पहाड़ों से घिरी हुई दुर्गम घाटी जो सैकड़ों फुट की ऊंचाई पर स्थित हैं। ऐसी बर्फीली घाटी में कस्तूरी मृग अपने जीवन में कस्तूरी की गंध के पीछे भागता रहता है। लेकिन वह सच्चाई से परिचित नहीं हो पाता, उसे इस सच्चाई का ज्ञान नहीं हो पाता कि यह गंध तो उसकी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से ही आ रही है। वह इस गंध को ढूंढ-ढूंढ कर पूरा जिंदगी भटकता रहता है और अंत में थक जाता है, तब वह स्वयं को असहाय पाता है और खुद पर ही चिड़चिड़ाने लगता है।

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