Hindi, asked by jaiswalpoonam360, 9 hours ago

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न निम्नलिखित काव्य-सूक्तियों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए- (क) काहे री नलनी तू कुम्हिलानी, तेरे ही नालि सरोवर पानी। हिन्दी में अर्थ
क्लास 11th यूपी बोर्ड हिंदी काव्यांजलि चैप्टर वन का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ​

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Answered by stuchitharth491111
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Answer:

Explanation:

प्रश्न:

कबीरदास का जीवन-परिचय दीजिए।

या

कबीरदास की काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

या

सन्त कबीर का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का नामोल्लेख कीजिए तथा साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर:

जीवन-परिचय:

सन्त (ज्ञानाश्रयी निर्गुण) काव्यधारा के प्रवर्तक कबीरदास का जन्म संवत् 1456 (सन् 1399) की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा, सोमवार को हुआ था। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है

चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।

जेठ सुदी बरसायत को, पूरनमासी प्रगट भए ॥ (कबीर-चरित-बोध)

बाबू श्यामसुन्दर दास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि इसी संवत् को स्वीकार करते हैं। एक जनश्रुति के अनुसार इनका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था। कहते हैं कि ये एक विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे, जिसने इन्हें लोक-लाज के भय से काशी के लहरतारा नामक स्थान पर तालाब के किनारे छोड़ दिया था, जहाँ से नीरू नामक एक जुलाहा एवं उसकी पत्नी नीमा नि:सन्तान होने के कारण इन्हें उठा लाये।

कबीर के जन्म-स्थान के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद हैं, परन्तु अधिकतर विद्वान् इनका जन्म काशी में ही मानते हैं, जिसकी पुष्टि स्वयं कबीर की यह कथन भी करता है – काशी में परगट भये, हैं रामानन्द चेताये। इससे इनके गुरु का नाम भी पता चलता है कि प्रसिद्ध वैष्णव सन्त आचार्य रामानन्द से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। गुरुमन्त्र के रूप में इन्हें ‘राम’ नाम मिला, जो इनकी समग्र भावी साधना का आधार बना।

कबीर की पत्नी का नाम लोई था, जिससे इनके कमाल नामक पुत्र और कमाली नामक पुत्री उत्पन्न हुई। कबीर बड़े निर्भीक और मस्तमौला स्वभाव के थे। व्यापक देशाटन एवं अनेक साधु-सन्तों के सम्पर्क में आते रहने के कारण इन्हें विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों का ज्ञान प्राप्त हो गया था। ये बड़े सारग्राही एवं प्रतिभाशाली थे। कबीर की दृढ़ मान्यता थी कि मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार ही गति मिलती है, स्थान-विशेष के प्रभाव से नहीं। अपनी इसी मान्यता को सिद्ध करने के लिए अन्त समय में ये मगहर चले गये; क्योंकि लोगों की मान्यता थी कि काशी में मरने वाले को मुक्ति मिलती है, किन्तु मगहर में मरने वाले को नरक। अधिकतर विद्वानों ने माना है कि कबीर की मृत्यु संवत् 1575 (सन् 1519) में हुई। इसके समर्थन में अग्रलिखित उक्ति प्रसिद्ध है

संवत् पंद्रह सौ पछत्तरा, कियो मगहर को गौन।

माघे सुदी एकादशी, रलौ पौन में पौन ॥

कृतियाँ-कबीर लिखना-पढ़ना नहीं जानते थे। यह बात उन्होंने स्वयं कही है

मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ।

उनके शिष्यों ने उनकी वाणियों का संग्रह ‘बीजक’ नाम से किया, जिसके तीन मुख्य भाग हैं – साखी, सबद (पद), रमैनी। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार ‘बीजक’ का सर्वाधिक प्रामाणिक अंश ‘साखी’ है। इसके बाद सबद और अन्त में ‘रमैनी’ का स्थान है।

साखी संस्कृत के ‘साक्षी’ शब्द का विकृत रूप है और ‘धर्मोपदेश’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अधिकांश साखियाँ दोहों में लिखी गयी हैं, पर उनमें सोरठे का प्रयोग भी मिलता है। कबीर की शिक्षाओं और सिद्धान्तों का निरूपण अधिकतर ‘साखी’ में हुआ है।

सबद गेय-पद हैं, जिनमें संगीतात्मकता पूरी तरह विद्यमान है। इनमें उपदेशात्मकता के स्थान पर भावावेश की प्रधानता है; क्योंकि इनमें कबीर के प्रेम और अन्तरंग साधना की अभिव्यक्ति हुई है।

रमैनी चौपाई छन्द में रची गयी है। इनमें कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है।

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