दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
सभ्यता के विकास क्रम में भय की स्थितियों की विवेचना कीजिए।
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Answer:-
भय एक मनोविकार है जो किसी आने वाली आपदा की भावना या दुःख के कारण का सामना होने पर मन में आवेग या आश्चर्य उत्पन्न करता है। भय हर प्राणी या समाज में एक. समान नहीं होता है। भय सभ्यता के विकास के साथ-साथ कम होता जाता है। जैसे जंगली तथा असभ्य जातियों में भय अधिक होता है, और इसी भय के द्वारा वे अपने काम निकालती हैं तथा जिससे भयभीत होती हैं,उसे श्रेष्ठ मानकर उसकी पूजा व सम्मान करती हैं। इसका कारण यह है कि असभ्य या जंगली जातियों का परिचय क्षेत्र छोटा होता है तथा जानकारियाँ कम होती हैं। परन्तु जैसे-जैसे सभ्यता के विकास के कारण प्राणी सभ्य होता जाता है और समाज विस्तृत होता जाता है,भय की सम्भावना कम होती जाती है।
स्थायी रक्षा की संभावना भी कम होती जाती है। सभ्यता के विकास में असभ्य काल जैसा भूतों का डर तो छूट गया है तथा पशुओं की बाधा भी छूट गई है, परन्तु मनुष्य के लिए मनुष्य का भय बढ़ता जा रहा है। वर्तमान में,मनुष्य के दुःख का कारण मनुष्य ही है। सभ्यता के विकास से दुःखदान की विधियाँ गूढ़ व जटिल हो गयी हैं। सभ्यता की वर्तमान स्थिति में एक जाति को दूसरी जाति से,एक देश को दूसरे देश से, भय के स्थायी कारण प्रतिष्ठित हो गये हैं। सबल व सक्षम देशों के मध्य अर्थ-संघर्ष,सबल-निर्बल देशों के बीच अर्थशोषण की प्रक्रिया भय की स्थिति को ही जन्म देती है और विश्व-प्रेम और आध्यात्मिकता का नारा लगाती है। कैसी विषम स्थिति पैदा हो गई है।