दुर्जनेन समम् सख्यम्, द्वेषम् चापि न कारयेत्। उष्णः दहति च अङ्गारः/अड्.गारः शीतः कृष्णायते करम्॥
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दुर्जन, से प्रीति (मित्रता) और शत्रुता कभी नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये उस कोयले के समान है जो यदि गरम हो तो जला देता है और शीतल होने पर शरीर को काला कर देता है।
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