दूर के ढोल सुहावने निंबद
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सुनी सुनाई बातों पर बिना जांचे-परखे विश्वास कर लेना और फिर अक्सर धोखा खा जाना और उसके बाद पछताना मानव स्वभाव का एक अंग है। कई बार ऐसा भी होता है कि कहीं दूर से सुनाई दे रही रोने-धोने की आवाज को सुनकर मनुष्य कह उठता है, जैसे कहीं पर गीत संगीत का कोई बढ़िया कार्यक्रम हो रहा है। लेकिन वहां पहुंचने पर जब पता चलता है
कि वहां तो लोग किसी मृत्यु पर, या घर द्वार जल जाने पर रो रहे हैं तो वह लज्जित होकर रह जाता है। तब उसे कहने को विवश हो जाना पड़ता है कि दूर के ढोल सुहावने लगा करते हैं। कई बार मनुष्य अपना घर-द्वार बेचकर देखादेखी में कोई काम करने लगता है। पर जब तक वास्तविकता सामने आ पाती है, सब कुछ लुट चुका होता है। माता या पत्नी के गहने आदि बेचकर केवल सुने-सुनाए आधार पर इस कारण विदेश चले जाते हैं कि वहां बहुत काम-धंधे और बहुत कमाई है। परंतु वहां पहुंचकर जब दो जून की रोटी के भी लाले पड़ जाते हैं, तब ध्यान आता है की जिस स्वर को ढोल की आवाज समझकर भाग आया, वह तो पूरा विलाप निकला। स्पष्ट है की हर सुनी सुनाई बात सच नहीं होती। हर कार्य सभी के लिए लाभदायक नहीं हुआ करता। रेगिस्तान में चलते हुए दूर से चमककर जो रेत पानी का भ्रम पैदा करती है, उसे पीने की इच्छा से उस तरफ बेतहाशा भागने वाला मृग प्राण गंवाने के सिवा और कर ही क्या पाता है। यह सब जान मनुष्य को हर सुनी सुनाई बातों को, अफवाह को ठीक या सच नहीं मान लेना चाहिए। अच्छी प्रकार जांच-परख कर कार्य करने वाला व्यक्ति की लाभ पाता और अपने कार्य में सफलता का अधिकारी बनता है।
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