दुर्खीम के धर्म सिद्धान्त की आलोचनात्मक परीक्षण
Answers
Answered by
0
Answer:
दुर्खीम का मानना है की धर्म एक सामाजिक प्रघटना है अतः धर्म का निर्माण समाज करता है इसलिए समाज ही धर्म है, समाज ही ईश्वर है, और समाज ही स्वर्ग का साम्राज्य है। पवित्र और अपवित्र की अवधारणा समाज सापेक्ष होती है। पवित्र वस्तुओं को ही धर्म की संज्ञा दी जाती है। धर्म निर्माण समाज इसलिए करता है जिससे समाज में संगठन बना रहे।
Hope it helps u keep smiling :)
Explanation:
Similar questions