थार मरुस्थल में जनजीवन kyun viral
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भारत में थार मरुभूमि का अधिकांश हिस्सा राजस्थान के पश्चिमी भाग में है। गुजरात के पूरे कच्छ और कई अन्य जिलों का कुछ-कुछ हिस्सा रेगिस्तानी है। पंजाब के भठिंडा और फिरोजपुर तथा हरियाणा के हिसार और महेंद्रगढ़ जिलों का कुछ-कुछ हिस्सा भी रेगिस्तानी है। थार के करीब 60 फीसदी हिस्से पर कम या ज्यादा खेती की जाती है, करीब 30 फीसदी हिस्से पर वनस्पतियाँ हैं, पर यह मुख्यतः चारागाह के रूप में ही काम आता है। इसके पूर्वी हिस्सों में सालाना औसत 500 मिमी. पानी बरसता है तो पश्चिम में 100 मिमी पर यह पानी भी बहुत व्यवस्थित ढंग का नहीं होता। किसी साल बहुत-ज्यादा पानी पड़ गया तो किसी साल एकदम नहीं। सो, खेती बहुत ही मुश्किल है और हर दस में से चार साल सूखा रहता है। मरु क्षेत्र के अधिकांश हिस्से में चार-पाँच महीने तेज हवाएँ चलती हैं। गर्मियों में रेतीले तूफान बहुत आम हैं।
पर इस इलाके में मौजूद हरियाली, भले ही वह कितनी भी कम क्यों न हो, विविधता भरी है। यहाँ करीब 700 किस्म के पेड़-पौधे पाये जाते हैं जिनमें से 107 किस्म की तो घास ही है। इनकी जड़ें बहुत अन्दर तक जाती हैं और ये प्रतिकूल जलवायु में भी जीवित रहने और अनुकूल मौसम होते ही ज्यादा-से-ज्यादा प्राण तत्व-पानी और अन्य पोषक तत्व-ले लेने में सक्षम हैं। स्थानीय घास की एक विशेषता असंख्य बीज पैदा करते जाना भी है। यहाँ की ज्यादातार पैदावार पौष्टिकता और लवणों से भरी है। इसके साथ ही थार क्षेत्र को सबसे उन्नत किस्म के कुछ पशुओं का ‘वरदान’ भी मिला हुआ है। देश के ऊन का 50 फीसदी हिस्सा यहीं होता है और उत्तर भारत में श्रेष्ठ किस्म के बैल यहीं से जाते हैं।
आशा करता हू कि सामझ आ गाया होगा।।