द्रोणाचार्य को हस्तिनापुर में राजकुमारों को अस्त्र - विद्या सिखाने का काम कैसे मिला
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प्राचीन काल की कथाओं के अनुसार, जब सभी राजकुमार खेल रहे थे तब गेंद कुआं में चल गया था। तब एक तेजस्वी ब्राह्मण ने सूखे घास के तीनको को गेंद की तरफ बिना देखे निशाना लगाया। एक घास के तिनके के ऊपर दूसरी घास की टीम के की एक सिलसिलेवार ढंग से एक डंडे का आकार ले लिया। वह तेजस्वी ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि द्रोणाचार्य थे।तब पांडव पुत्र अर्जुन ने उत्सुकता दिखाई कि यह कैसे हुआ। अर्जुन जी ने यह बात भीष्म पितामह को बताई। जब भीष्म पितामह ने देखा की एक ब्राह्मण ने ऐसा किया तो वे जरूर द्रोणाचार्य होंगे। भीष्म पितामह के अनुसार उन्होंने राजकुमारों को अस्त्र विद्या सिखाने का काम द्रोणाचार्य को सौंप दिया।
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