द्रुपद और द्रोणाचार्य सहपाठी थे इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए
Answers
Dhrupad aur dronacharya sehpathi the unki kahani kuch is prakar hai
*=द्रोणाचार्य और द्रुपद एक ही गुरुकुल में साथ-साथ पढ़ते थे। द्रुपद बड़े होकर राजा हो गए और अपने बचपन के संगी-साथियों को भूल-से गए। मगर द्रोणाचार्य को उनकी मित्रता याद थी। एक बार उन्हें राजपुरुष के सहयोग की आवश्यकता पड़ी।
विज्ञापन
वह द्रुपद से मिलने गए। राजसभा में पहुंचकर द्रोणाचार्य ने द्रुपद को सखा कहकर संबोधित किया। पर द्रुपद ने ध्यान नहीं दिया। द्रोणाचार्य को लगा कि द्रुपद को शायद स्मरण नहीं आ रहा। उन्होंने अपना परिचय और गुरुकुल का संदर्भ याद कराया और फिर ′मित्र′ कहा।
इस बार द्रुपद ने अपने सहपाठी को पहचाना जरूर, पर तिरस्कार के साथ। उन्होंने कहा, जो राजा नहीं, वह राजा का सखा नहीं हो सकता। बचपन की बातों का बड़े होने पर कोई मतलब नहीं होता। उनका स्मरण कराके आप मेरे सखा बनने की चेष्टा कर रहे हैं।
द्रोणाचार्य को इस तिरस्कार से बड़ा दुख हुआ। उन्होंने इसका बदला लेने का निश्चय किया। वह हस्तिनापुर जाकर पांडवों और कौरव बालकों को अस्त्र विद्या सिखाने लगे। जब शिक्षा पूरी हो गई और शिष्यों ने गुरु से दक्षिणा मांगने की प्रार्थना की, तो उन्होंने कहा, दक्षिणा में मुझे धन-धान्य और रत्न-माणिक्य नहीं चाहिए।
अगर दक्षिणा देना चाहते हो, तो राजा द्रुपद को जीतकर, उन्हें बांधकर मेरे सामने उपस्थित करो। भीम और अर्जुन ने यही किया। उन्होंने द्रुपद को बांधकर द्रोणाचार्य के सामने उपस्थित कर दिया।
लेकिन बात यहीं नहीं थमी, क्योकि द्वेष का कुचक्र टूटता नहीं। द्रुपद के मन में द्रोणाचार्य के लिए प्रतिशोध की भावना बनी रही। उन्होंने बाज ऋषि को प्रसन्न करके वरदान के रूप में ऐसा पुत्र मांग लिया, जो द्रोणाचार्य को मार सके। उन्होंने उस पुत्र का नाम धृष्टद्युम्नः रखा। बड़े होने पर महाभारत में उसी ने द्रोणाचार्य का वध किया।
=======
Answer:
=======
सुदामा निर्धन थे तथा श्रीकृष्ण राजा थे।
उसी प्रकार महाराज द्रुपदतथा गुरू द्रोणाचार्य भी आश्रम में एक ही साथ शिक्षा ग्रहण करतेथे तथा परम मित्र थे।
सुदामा के द्वारका जाने पर श्रीकृष्ण नेउनकाआदर-सत्कार किया था।
परन्तु गुरू द्रोणाचार्य के अपने मित्र राजाद्रुपद के पास जाने पर राजा द्रुपद ने उनका अपमान किया और महाभारत के युद्ध में एक दूसरे के विपरीत युद्ध करके दुश्मनी का परिचय दिया।