दुर्वासा ने कुंती से क्या कहा
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महाभारत की ऐसी बहुत सी कथाएँ प्रचलित है,जिसमें ऋषि दुर्वासा से लोगों ने वरदान प्राप्त किये इन्ही में से एक है पांडव की माता कुंती और दुर्वासा से जुड़ी कथा.यह कथा उस समय की है
जब कुंती एक जवान लड़की थी, जिसे राजा कुंतीभोज ने गोद लिया था। राजा अपनी बेटी का एक राजकुमारी की तरह पालन पोषण करते थे. एक बार महर्षि दुर्वासा महाराज कुन्तिभोज के यहाँ मेहमान बनकर गए.
जब कुंती एक जवान लड़की थी, जिसे राजा कुंतीभोज ने गोद लिया था। राजा अपनी बेटी का एक राजकुमारी की तरह पालन पोषण करते थे. एक बार महर्षि दुर्वासा महाराज कुन्तिभोज के यहाँ मेहमान बनकर गए.वहाँ कुंती ने पूरे मन से ऋषि की सेवा की. कुंती ने ऋषि के गुस्से को जानते हुए, समझदारी के साथ उनकी सेवा की और खुश किया. ऋषि दुर्वासा भी कुंती की इस सेवा से बहुत प्रसन्न हुए, और जाते वक्त उन्होंने कुंती को अथर्ववेद मन्त्र का ज्ञान दिया,
जब कुंती एक जवान लड़की थी, जिसे राजा कुंतीभोज ने गोद लिया था। राजा अपनी बेटी का एक राजकुमारी की तरह पालन पोषण करते थे. एक बार महर्षि दुर्वासा महाराज कुन्तिभोज के यहाँ मेहमान बनकर गए.वहाँ कुंती ने पूरे मन से ऋषि की सेवा की. कुंती ने ऋषि के गुस्से को जानते हुए, समझदारी के साथ उनकी सेवा की और खुश किया. ऋषि दुर्वासा भी कुंती की इस सेवा से बहुत प्रसन्न हुए, और जाते वक्त उन्होंने कुंती को अथर्ववेद मन्त्र का ज्ञान दिया,जिससे कुंती अपने मनचाहे देव से प्रार्थना कर संतान प्राप्त कर सकती थी. तभी आतुरतावश मन्त्र का चमत्कार देखने के लिए कुंती शादी से पहले सूर्य देव का आह्वान करने लगी, तब उन्हें कर्ण प्राप्त हुआ
Explanation:
कुंती की सेवा से प्रसन्न हो ऋषि दुर्वासा ने उन्हें ऐसा मंत्र बताया था जिसकी सहायता से वह देवताओं का ध्यान कर पुत्र रत्न की प्राप्ति कर सकती थी। पांडवों का जन्म इसी मंत्र की सहायता से हुआ था।
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