दीरघ साँस न लेहि दुख, सुख साईहि न भूलि।
दई दई क्यों करत है, दई दई सु कबूलि ।।
नर की अरु नल नीर की गति एकै करि जोइ।
जेतौ नीचो हवै चले, तेतौ ऊँचो होइ।।
-बिहारी
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दीरघ साँस न लेहि दुख, सुख साईहि न भूलि।
दई दई क्यों करत है, दई दई सु कबूलि ।।
बिहारी जी दोहे में समझाना चाहते है , दुखी व्यक्ति को उके गुरु और मित्र धैर्य प्रदान करते हुए कहते , मुश्किल समय में तुम हाय दैव, हाय दैव क्यों करते हो ? ईश्वर ने जो तुम्हें दिया उसमें तुम्हें खुश रहना चाहिए | तुम दुःख में कभी लम्बी साँस न लेना और सुख में कभी भी ईश्वर को मत भूलना | सुख और दुःख ईश्वर द्वारा प्राप्त होते है |
नर की अरु नल नीर की गति एकै करि जोइ।
जेतौ नीचो हवै चले, तेतौ ऊँचो होइ।।
बिहारी जी दोहे में समझाना चाहते है ,कि आदमी की और नल की गति एक जैसी दिखाई पड़ती है | यह दोनों जितने नीचे होकर चलते है , उतनी सफलता प्राप्त करते है | आदमी जितना नम्र होकर चलेगा , वह उतना ही ऊँचाईयों तक जाता है | नल का पानी जितने नीचे से आयगा, उतना ही ऊपर चढ़ेगा |
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