Hindi, asked by auqiltech, 1 year ago

दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं। ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥ का अर्थ

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Answered by indumalik2255
133

Answer:

इस दोहे में रहीम जी कहते हैं दोहा बेशक छोटा होता है पर उसका अर्थ गहरा होता है जैसे एक कलाकार अपने आप को समेटकर जलती हुई रिंग में से निकल जाता है

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Answered by franktheruler
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दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं। ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥ का अर्थ निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है

  • पुर्युक्त पंक्तियां रहीम जी के दोहे से ली गई है । इन पंक्तियों में रहीम जी कह रहे है कि उनके दोहों में शब्द भले कम है परन्तु उनका अर्थ बड़ा गूढ़ व दीर्घ है। उन्होंने इस बात को समझने के लिए एक उदाहरण दिया है जिसमें वे कह रहे है कि जैसे एक नट करतब दिखाता है, वह करतब दिखाने के दौरान अपने बड़े शरीर को सिमटा कर कुंडली मार कर बैठता है तो छोटा लगने लगता है।
  • इस प्रकार एक कुशल दोहेकार दोहे के सीमित शब्दो में बहुत बड़ी तथा गहरी बातें कह देते है।

रहीम के दोहों के उदाहरण

  • रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि ।
  • रूठे सुजन मनाइए , जो रूठे सौ बार।
  • वे रहीम नर धन्य है , पर उपकारी अंग।

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