दुरस्थ से बने रहे हम सहपथ के अनुगामी रोग प्रवेश से मुक्त रहे हम जड़ चेतन के स्वामी वाणी में हो अमृत अमृत की पड़े ना हम पर छाया प्ररहित प्रति क्षण आजीवन अपनी काया आलोकित हो तमशा व्रत पथ प्रतिपल मंगलमय हो प्राप्त करें अमृत्व मृत्यो का हमें ना भय हो अपठित गद्यांश को पढ़िए इन के नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए कवि किस पथ से दूर रहना चाहता है ? हम पर किसकी छाया नहीं पड़नी चाहिए? हमारा जीवन किस के लिए अर्पित होना चाहिए? कवि क्या प्राप्त करना चाहता है?
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kavi sahi path se dur rahna chahta h.
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