द्रव्य की तीनो अवस्थाएं अन्तःरूपान्तरित होती हैं समझाइये।
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Explanation:
इस साल राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के अवसर पर मैंने मुम्बई में किशोर वय के छात्रों एवं छात्राओं के लिए एक व्याख्यान दिया था। इसमें मैंने बताया कि ठोस, द्रव और गैसों में क्या फर्क हैं। इसके अलावा इनसे कुछ भिन्न दानेदार पदार्थों (पाउडर) की भी चर्चा की। दानेदार पदार्थ कुछ मायनों में ठोस पदार्थों की तरह और कुछ मायनों में द्रव की तरह व्यवहार करते हैं। यहाँ उस ही वार्ता में कही गई बातों को संक्षेप में लिख रहा हूँ।
“यह सर्वविदित है कि द्रव्य तीन रूप में विद्यमान होते हैं - ठोस, द्रव और गैस।”
यह उद्धरण मैंने एन.सी.ई.आर.टी. कक्षा 11वीं की पुस्तक से लिया है। लेकिन किसी भी अन्य पाठ्यपुस्तक में ऐसा ही कथन मिल जाएगा। यह कथन काफी स्पष्ट और गैर-विवादास्पद लगता है, और अनेकों बार दोहराया जा चुका है। आज की चर्चा में मैं इसी जन-स्वीकृत बात के सच को पुन: परखना चाहता हूँ। इस प्रक्रिया में हम द्रव्य (matter) की विभिन्न अवस्थाओं के बारे में भी कुछ जानेंगे।
परन्तु ठोस पदार्थों या द्रव पदार्थों या गैसों के गुणधर्मों के बारे में और अधिक जानकारी देना मेरा मुख्य उद्देश्य नहीं है। दरअसल, मैं कहना चाहता हूँ कि आप लोग बिना सोचे-समझे ऐसे किसी भी कथन को स्वीकार न करें। अगर आप थोड़ा-सा भी सोचने की ज़हमत उठाएँगे तो समझ जाएँगे कि यह कथन पूरी तरह सही नहीं है। विद्यार्थियों को स्वयं भी विचार करना चाहिए और जो बताया या पढ़ाया जा रहा है वह सही है या नहीं, यह सोचना चाहिए। और यह भी कि अगर यह सही भी है, तो कितनी हद तक? आज मेरा असली मकसद यही है। और यह काम हम द्रव्य की अवस्थाओं की चर्चा के उदाहरण के ज़रिए करेंगे।
अवस्थाएँ तीन ही क्यों?
चलिए शुरुआत हम यह पूछकर करते हैं कि द्रव्य की अवस्थाएँ तीन ही क्यों हैं। यह कुछ-कुछ ऐसा ही प्रश्न है जैसे -- हमारे ब्रह्माण्ड के आयाम तीन ही क्यों हैं? या क्वार्क कणों के तीन समूह क्यों हैं? थोड़ी देर सोचने पर आप समझ जाएँगे कि इसका सही जवाब है कि जिस तरह अपनी सुविधा के लिए हम फाइलों को अलमारी की निर्धारित दराज़ों में रखते हैं, उसी तरह द्रव्य की अवस्थाएँ भी द्रव्यों के वर्गीकरण का एक तरीका है। द्रव्य बहुत सारे हैं, और हम उन्हें समूहों में बाँटने का ऐसा तरीका चुनते हैं जो सबसे अधिक सुविधाजनक हो। वर्गीकरण के कुछ अन्य तरीके भी हो सकते हैं -- पदार्थ के नाम के पहले वर्ण के अनुसार (जैसे शब्दकोष में), या उनके गुणधर्मों के आधार पर (जन्तुओं की विभिन्न प्रजातियों का प्राणि-वैज्ञानिक वर्गीकरण) या इन दोनों के बीच का कोई तरीका (जैसे पुस्तकालय में किताबें)। द्रव्यों का रंग, विद्युत चालकता या कार्बनिक-अकार्बनिक, या ऊष्मा के सुचालक हैं कि नहीं आदि के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है। ये सभी तरीके उपयोगी हैं, और ज़रूरत के हिसाब से इनका इस्तेमाल किया जाता है।
एक बार जब हमने यह तथ्य समझ लिया कि द्रव्य की विभिन्न अवस्थाएँ अलग-अलग विषयों की फाइलों के लिए निर्धारित अलमारी की विभिन्न दराज़ों की तरह हैं तो दराज़ों की संख्या का मामला पूरी तरह से सुविधा पर निर्भर है। किसी एक वर्ग को कभी भी छोटे वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, या कभी कई छोटे वर्गों को मिलाकर बड़ा वर्ग बनाया जा सकता है। अत: द्रव्य की विभिन्न अवस्थाओं की संख्या कोई गूढ़ प्रश्न नहीं है: हम इसे जो भी संख्या चाहें, वह बना सकते हैं।
कभी-कभी इस प्रकार की चर्चा सिर्फ शब्दों की चर्चा बनकर रह जाती है जैसे -- ठोस, द्रव और गैस की परिभाषा शब्दकोष के अनुसार क्या है? हम यहाँ शब्दों की चर्चा नहीं कर रहे हैं। हम शब्दों के पीछे छिपे विचारों की चर्चा कर रहे हैं। आप कह सकते हैं कि, “यह तो बोल-चाल की भाषा का शब्द है। इसका कोई सुनिश्चित अर्थ नहीं है।” पर विज्ञान में बहुत-से बोल-चाल के शब्दों को अपनाया गया है पर उनके अर्थ सीमित और सुनिश्चित कर दिए