Hindi, asked by awikavaishnav08, 12 hours ago

देसीयारकालागी देश की
पर्वतार श्रीरबह पिछी ऑमिश्री
पूर्ण परीसराती।
कर दी मानी
मिलाकर कामिर अपनत्य का पालन
कति करनी पड़ेगी | हमें प्रताप यावीथ २६७४थी का विकास करना ही पड़ेगा और राधा
को बौद्धिक संपतचा तथा वतिक ऐकार को भोयातिते करपा ही होगा सरकार को भी
एक हृदय, एक अंत करण, एक भावना- कि हम पत्र आणि और वा के धन से पो
एक ही बिरादरी के सदस्य हैं- का विकास करना चाहिए।
परि विश्व विष्ठा को भावना बानी है, तो सीना को दूसरी पराओं से
गुण ग्रहण को वृत्ति पैदा करनी होगी। जिस देश बहुत दिनों से आपकसिंस्कृतियों - आर्य
दबिक हिंर बोट चर्पी, पारसी, पुसलमानी और खिलौष का मिलन स्थल है। आज
अन्य ससार शिकुडणा जा रहा है, तो सधी आत्ति एवं संस्कृतियों के इतिहास हमारे अध्ययन
के विषय को चाहिए। यदि हम एक दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह जानना चाहते हैं, तो
इथे अपचे असणाव की वृत्ति और बहन की पावरा छोड़ देनी चाहिए और जान से नी
चाहिए कि दूसरी संस्कृतियों के दृष्टिकोण यो उतने ही उचित हैं और उसका प्रभाव भी
उहत्या हो शक्तिमान है, जिसका रुधारा है। मानव जाति के इतिहास के इस संकर कान में
हथे शक्यीय प्रकृति को पुरः पूतन इंग पर पबित करने की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध
में प्राच्य पाश्चात्य अवबोध के लिए 'मूनेस्को' जो मूल्यवान कार्य कर रहा
हम संसा करते हैं।
है, उसकी​

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Answered by vickygautamji1234
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Answer:

देसीयारकालागी देश की

पर्वतार श्रीरबह पिछी ऑमिश्री

पूर्ण परीसराती।

कर दी मानी

मिलाकर कामिर अपनत्य का पालन

कति करनी पड़ेगी | हमें प्रताप यावीथ २६७४थी का विकास करना ही पड़ेगा और राधा

को बौद्धिक संपतचा तथा वतिक ऐकार को भोयातिते करपा ही होगा सरकार को भी

एक हृदय, एक अंत करण, एक भावना- कि हम पत्र आणि और वा के धन से पो

एक ही बिरादरी के सदस्य हैं- का विकास करना चाहिए।

परि विश्व विष्ठा को भावना बानी है, तो सीना को दूसरी पराओं से

गुण ग्रहण को वृत्ति पैदा करनी होगी। जिस देश बहुत दिनों से आपकसिंस्कृतियों - आर्य

दबिक हिंर बोट चर्पी, पारसी, पुसलमानी और खिलौष का मिलन स्थल है। आज

अन्य ससार शिकुडणा जा रहा है, तो सधी आत्ति एवं संस्कृतियों के इतिहास हमारे अध्ययन

के विषय को चाहिए। यदि हम एक दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह जानना चाहते हैं, तो

इथे अपचे असणाव की वृत्ति और बहन की पावरा छोड़ देनी चाहिए और जान से नी

चाहिए कि दूसरी संस्कृतियों के दृष्टिकोण यो उतने ही उचित हैं और उसका प्रभाव भी

उहत्या हो शक्तिमान है, जिसका रुधारा है। मानव जाति के इतिहास के इस संकर कान में

हथे शक्यीय प्रकृति को पुरः पूतन इंग पर पबित करने की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध

में प्राच्य पाश्चात्य अवबोध के लिए 'मूनेस्को' जो मूल्यवान कार्य कर रहा

हम संसा करते हैं।

है, उसकी

Explanation:

bura mat manano points kama raha hu

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