दूसरे पद में कबीर जी ने एक विरहिनी के दर्द की व्याख्या किस प्रकार की है
Answers
बालम, आवो हमारे गेह रे।
तुम बिन दुखिया देह रे।
सब कोई कहै तुम्हारी नारी, मोकों लगत लाज रे।
दिल से नहीं लगाया, तब लग कैसा सनेह रे।
इस पद के माध्यम से कबीर ने एक विरहिणी की दर्द की व्याख्या इस तरह की है कि जैसे कोई विरहिनी स्त्री अपने प्रियतम के बिछड़ने पर दिन-रात अपने प्रियतम का ही चिंतन करती रहती है। उसे प्रियतम के विछोह के बाद हर समय प्रियतम की ही याद आती रहती है और उसे कुछ नहीं अच्छा लगता। उसके मन में प्रियतम के प्रति के मिलन की ही आकांक्षा बनी रहती है। कबीर ने उसी विहहिनी के दर्द की तुलना अपने ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति से की है। वे भी विरहिनी स्त्री की भांति ईश्वर से मिलन के लिए तड़प रहे हैं और वह ईश्वर को पति और स्वयं को प्रेमिका का मान चुके हैं।
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