Social Sciences, asked by sahilbhaigaming77, 7 hours ago

दूसरे दिन हम घोड़ों पर सवार होकर ऊपर की ओर चले। डाँड़े से पहिले एक
जगह चाय पी और दोपहर के वक्त डाँड़े के ऊपर जा पहुँचे। हम समुद्रतल से
17-18 हजार फीट ऊँचे खड़े थे। हमारी दक्खिन तरफ़ पूरब से पच्छिम की ओर
हिमालय के हजारों श्वेत शिखर चले गए थे। पीटे की ओर दीखने वाले पहाड़
बिलकुल नगे थे. न वहाँ बरफ़ की सफ़ेदी थी, न किसी तरह की हरियाली। उत्तर
की तरफ बहुत कम बरफ़ वाली चोटियाँ दिखाई पड़ती थीं। सर्वोच्च स्थान पर डाँडे
के देवता का स्थान था, जो पत्थरों के ढेर, जानवरों की सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े
को झडियों से सजाया गया था। अब हमें बराबर उतराई पर चलना था। चढ़ाई तो
कुछ दूर थोड़ी मुश्किल थी, लेकिन उतराई विलकुल नहीं। शायद दो-एक और
सवार साथी हमारे साथ चल रहे थे। मेरा घोड़ा कुछ धीमे चलने लगा। मैंने समझा
कि चढाई की थकावट के कारण ऐसा कर रहा है, और उसे मारना नहीं चाहता था।​

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Answered by sgokul8bkvafs
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Explanation:

दूसरे दिन हम घोड़ों पर सवार होकर ऊपर की ओर चले। डाँड़े से पहिले एक जगह चाय पी और दोपहर के वक्त डाँड़े के ऊपर जा पहुँचे। हम समुद्रतल से 17-18 हज़ार फीट ऊँचे खड़े थे।6 days ago

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