दुसरे विश्व युद्ध में फौज में भर्ती कराने के लिए अंग्रेज क्या क्या किया करते ? in Hindi for class 10th
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अन्य अवधियों के लिए भारतीय सेना (1895-1947) देखें
British Indian Army
British Raj Red Ensign.svg
British Raj Red Ensign
सक्रिय 1857–1947
देश British Raj
निष्ठा British Crown
प्रकार Army
विशालता 2.5 million men in 1945
का भाग British Empire
मुख्यालय GHQ India (Delhi)
युद्ध के समय प्रयोग Second Afghan War
Third Afghan War
Second Burmese War
Third Burmese War
Second Opium War
1882 Anglo-Egyptian War
1868 Expedition to Abyssinia
First Mohmand Campaign
Boxer Rebellion
Tirah Campaign
British expedition to Tibet
Sudan Campaign
World War I
Waziristan campaign 1919–1920
Waziristan campaign 1936–1939
World War II
North West Frontier
सेनापति
प्रसिद्ध
सेनापति Frederick Roberts, 1st Earl Roberts
Herbert Kitchener, 1st Earl Kitchener
William Birdwood, 1st Baron Birdwood
Archibald Wavell, 1st Earl Wavell
Claude Auchinleck
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बिटिश भारतीय सेना में मात्र 200,000 लोग शामिल थे।[1] युद्ध के अंत तक यह इतिहास की सबसे बड़ी स्वयंसेवी सेना बन गई जिसमें कार्यरत लोगों की संख्या बढ़कर अगस्त 1945 तक 25 लाख से अधिक हो गई।[2][3] पैदल सेना (इन्फैन्ट्री), बख्तरबंद और अनुभवहीन हवाई बल के डिवीजनों के रूप में अपनी सेवा प्रदान करते हुए उन्होंने अफ्रीका, यूरोप और एशिया के महाद्वीपों में युद्ध किया।[1]
बिटिश भारतीय सेना ने इथियोपिया में इतालवी सेना के खिलाफ; मिस्र, लीबिया और ट्यूनीशिया में इतालवी और जर्मन सेना के खिलाफ; और इतालवी सेना के आत्मसमर्पण के बाद इटली में जर्मन सेना के खिलाफ युद्ध किया। हालांकि अधिकांश बिटिश भारतीय सेना को जापानी सेना के खिलाफ लड़ाई में झोंक दिया गया था, सबसे पहले मलाया में हार और उसके बाद बर्मा से भारतीय सीमा तक पीछे हटने के दौरान; और आराम करने के बाद ब्रिटिश साम्राज्य की अब तक की विशालतम सेना के एक हिस्से के रूप में बर्मा में फिर से विजयी अभियान पर आगे बढ़ने के दौरान. इन सैन्य अभियानों में 36,000 से अधिक भारतीय सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी, 34,354 से अधिक घायल हुए[4] और लगभग 67,340 सैनिक युद्ध में बंदी बना लिए गए।[5] उनकी वीरता को 4,000 पदकों से सम्मानित किया गया और बिटिश भारतीय सेना के 38 सदस्यों को विक्टोरिया क्रॉस या जॉर्ज क्रॉस प्रदान किया गया।
बिटिश भारतीय सेना एक अनुभवी सेना थी जिसने प्रथम विश्व युद्ध के बाद से उत्तर पश्चिम सीमांत के छोटे-मोटे संघर्षों में और 1919–1920 और 1936–1939 के दौरान वजीरिस्तान में दो प्रमुख अभियानों और तृतीय अफगान युद्ध में युद्ध किया था। बिटिश भारतीय सेना में मानव बल की कमी नहीं थी लेकिन उनके बीच कुशल तकनीकी अधिकारियों का अभाव अवश्य था। घुड़सवार सेना (कैवलरी) को एक यंत्रीकृत टैंक सेना में रूपांतरित करने का काम शुरू ही हुआ था कि अपर्याप्त संख्या में टैंकों और बख्तरबंद वाहनों की आपूर्ति की असमर्थता एक रूकावट बन कर खड़ी हो गई।