देश को स्वतंत्र हुए कई वर्ष हो चुके हैं। इन छह दशकों में निश्चित रूप से भारत बहुत बदला है और जो कुछ सकारात्मक हुआ है, उसे तरह-तरह से देखने और दिखाने वाले बहुत है। इसमें कोई आपत्तिजनक बात नहीं है, मगर आजकल मीडिया को विफलताओं की तरफ देखने की ज्यादा फुर्सत नहीं रही। बहरहाल, विफलताओं पर भी नजर तो डालनी ही होगी। पहली विफलता तो हम इसे ही मानेंगे कि हमारे स्वतंत्रता दिवस को लेकर कोई उत्साह आज आमजनों में नजर नहीं आता; प्रधानमंत्री का लाल किले से भाषण इस अर्थ में थोड़ी उत्सुकता जरूर जगाता है कि उसमें वह कुछ जनहितकारी घोषणाएँ करते हैं और इस वर्ष शायद कुछ ज्यादा करेंगे, क्योंकि आम चुनाव निकट है, लेकिन इन घोषणाओं को सुनने के लिए टी.वी के सामने मुँह बाए बैठे नहीं रह सकते, क्योंकि सामान्य तौर पर हमारे तमाम प्रधानमंत्री पिछले वर्षों में लाल किले के प्राचीर से जो कुछ कहते रहे हैं, वह एक किस्म का सरकारी लिखित वक्तव्य जैसा होता है। आज़ादी के आसपास के वर्षों में हमारे पास तमाम क्षेत्रों में एक से एक बड़ी हस्तियाँ थी चाहे वह राजनीति का क्षेत्र हो, फिल्म का हो, संगीत का हो, कला का हो या ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र हो, लेकिन आज अक्सर बड़े व्यक्तित्व नदारद है।
१. प्रधानमंत्री का भाषण सुनने में आम व्यक्ति थोड़ी बहुत रूचि इसलिए दिखाता है, क्योंकि: *
1 point
(क) ऐसा करने में वह गर्व अनुभव करता है
(ख) वह आम जनता के हित से संबंधित घोषणाओं की अपेक्षा करता है
(ग) इससे उसे आनंद मिलता है
(घ) ऐसा करके वह देश के प्रति अपनी भक्ति दर्शाता है
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(ख) वह आम जनता के हित से संबंधित घोषणाओं की अपेक्षा करता
aur
(घ) ऐसा करके वह देश के प्रति अपनी भक्ति दर्शाता है.
both are right .
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