देश के विकास के लिए बनाया जाता है
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Explanation:
विकासशील देश शब्द का प्रयोग किसी ऐसे देश के लिए किया जाता है जिसके भौतिक सुखों का स्तर निम्न होता है (इस शब्द को लेकर तीसरी दुनिया के देशों के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए). चूंकि विकसित देश नामक शब्द की कोई भी एक परिभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं है, अतः विकास के स्तर इन तथाकथित विकासशील देशों में व्यापक रूप से भिन्न हो सकते हैं। कुछ विकासशील देशों में, औसत रहन-सहन का मानक भी उच्च होता है।ऐसे देश जिनकी अर्थव्यवस्था अन्य विकासशील देशों के मुकाबले उन्नत होती है, परन्तु जिन्होंने अभी तक विकसित देश के संकेत नहीं दिए होते हैं, उन्हें नवीन औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में रखा जाता है।
Explanation:
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि प्राकृतिक आपदाओं और सरकारी नीतियों की वजह से दुनिया के अमीरों और गरीबों में अंतर बढ़ता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र विकास फंड यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट में 187 देशों में विकास और वहां रह रहे लोगों के लिए सुविधाओं को आंका जाता है.
इस साल भारत 135वें स्थान पर है जिसमें और मध्य स्तर के विकसित देश हैं. यानि मिस्र, इंडोनेशिया, मंगोलिया और फिलिपींस. पाकिस्तान 146वें और नेपाल 145वें स्थान पर हैं और यह विकास की निचली श्रेणी में आते हैं. वहीं, भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका 73वें स्थान पर है और उच्च विकास के देशों की श्रेणी में शामिल है. इंडेक्स में सबसे ऊपर नॉर्वे है. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड और नीदरलैंड्स की बारी आती है. जर्मनी छठे स्थान पर है. एशियाई देशों में सिंगापुर सबसे आगे नौवें स्थान पर है.
ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स
हर साल यह संगठन ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स यानी मानव विकास सूचकांक जारी करता है. देखा जाता है कि किसी भी देश में उसके नागरिकों के लिए किस तरह की सुविधाएं हैं और उनका जीवन कितना आसान, तनावरहित और सुरक्षित है.
इससे संबंधित रिपोर्ट में लिखा गया है कि सरकारों को नौकरियां पैदा करने और मूलभूत सुविधाएं प्राप्त कराने पर ध्यान देना होगा. इस रिपोर्ट को आमदनी, शिक्षा और लंबे जीवनकाल के आधार पर बनाया गया है. आर्थिक अस्थिरता, सूखे और प्राकृतिक आपदाओं की वजह से इन मापदंडों पर असर पड़ता है. यूएनडीपी की प्रमुख हेलेन क्लार्क ने कहा, "जहां इन परेशानियों को सुलझाने की कोशिश की गई है, वहां विकास अच्छी तरह हुआ है."
क्लार्क यह भी कहती हैं कि गरीबी हटाना काफी नहीं है, गरीबी से ऊपर उठ रहे लोगों को वहां रखना भी होगा. हालांकि रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि ज्यादातर देशों में शिक्षा और तकनीक के बेहतर होने से विकास पर फर्क पड़ा है. लेकिन दुनिया भर में करीब आधे मजदूरों के पास स्थिर नौकरी नहीं है या वे अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं. 12 प्रतिशत लोग अपना पेट भर नहीं पाते.
नागरिकों पर निवेश
2014 ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स रिपोर्ट जारी होने से कई नीति निर्धारक मानने लगे हैं कि वैश्विक नीतियों और गरीबी को हटाने की कोशिशें जलवायु परिवर्तन और बड़ी कंपनियों की बलि चढ़ रही हैं. बड़ी कंपनियों में काम कर रहे मजदूरों को लगातार कम पैसे दिए जा रहे हैं और सरकारी बजट का बोझ गरीबों के कंधों पर टिका है. 1990 से हर साल संयुक्त राष्ट्र यह रिपोर्ट जारी करता है और इससे सरकारों को अपनी नीतियां बनाने में मदद मिलती है.
रिपोर्ट तैयार करने वाले मुख्य रिसर्चर खालिद मलिक कहते हैं कि सरकारें इस इंडेक्स पर बहुत ध्यान देती हैं और अगर उनके देश की रैंकिंग अच्छी नहीं होती तो यूएनडीपी पर दबाव भी डालती हैं.
हैरान करने वाली बात यह है कि विश्व के 85 सबसे अमीर लोगों के पास दुनिया के 3.5 अरब लोगों जितना पैसा है . मलिक कहते हैं कि गरीबी खराब नीतियों और संस्थानों की वजह से होती है. गरीब देशों में ही नहीं बल्कि अमीर देशों का भी यही हाल है.
अगर देशों के अंदर स्वास्थ्य, शिक्षा और आमदनी के फर्क को भी इंडेक्स में देखा जाए तो पहले 20 रैंक से कई अमीर देश हट जाएंगे. अमेरिका पांचवें से 28वें स्थान पर पहुंच जाता है, दक्षिण कोरिया 15वें से 35वें पर और जापान 17वें से 23वें पर. मलिक कहते हैं, "अगर आप लोगों पर निवेश करें, अगर आप मूलभूत संरचना बेहतर करें और लोगों को और विकल्प दें तो समाज स्थिर हो सकेगा."