Hindi, asked by sapnadivya2006, 10 months ago

देश प्रेम पर अनुच्छेद लिखो

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Answered by shailjad731
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Explanation:

देश के प्रति मन में होने वाला कोमल भाव जिसे वह बहुत अच्छा, प्रशंसनीय तथा सुखद समझता है, देश-प्रेम है । देश के साथ अपना घनिष्ठ संबंध बनाए रखने की चाहना देश-प्रेम है । स्वार्थ रहित तथा देश के सर्वतोमुखी कल्याण से ओत-प्रोत भाव देश-प्रेम है । देश के प्रति अंत:करण को अत्यंत द्रवीभूत कर देने वाले और अत्यधिक ममता से युक्त अतिशय अथवा प्रचंड भाव को देश-प्रेम कहते हैं ।

देश-प्रेम शाश्वत शोभा का मधुवन है । उर-उर के हीरों का हार है । हृदय का आलोक है । कर्तव्य का प्रेरक है । जीवन-मूल्यों की पहचान है । जीवन-सिद्धि का मूल मंत्र है । प्रश्न उठता है, देश से प्रेम क्यों हो, इसका उत्तर देते हुए स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, भारत मेरा जीवन, मेरा प्राण है ।

भारत के देवता मेरा भरण-पोषण करते हैं । भारत मेरे बचपन का हिंडोला, मेरे यौवन का आनन्दलोक और मेरे बुढ़ापे का बैकुंठ है ।’ महात्मा गाँधी कहते हैं, ‘मैं देश-प्रेम को अपने धर्म का ही एक हिस्सा समझता

हूँ । देश प्रेम के बिना धर्म का पालन पूरा हुआ, कहा नहीं जा सकता ।’

श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी देश-प्रेम का कारण बताते हुए लिखते हैं: ‘यह वन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है । यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है । इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है । हम जिएंगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए ।’

देश-प्रेम के सम्बन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का कथन है: ‘परिचय प्रेम का प्रवर्तक है । बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता । यदि देश-प्रेम के लिए हृदय में जगह करनी है तो देश के स्वरूप से, अंग-अंग से परिचित और अभ्यस्त हो जाइए ।’

जब देश-प्रेम का दिव्य रूप प्रकट होता है तब आत्मा में मातृभूमि के दर्शन होते हैं । स्वामी रामतीर्थ लिखते हैं, ‘मेरी वास्तविक आत्मा सारे भारतवर्ष की आत्मा है । जब मैं चलता हूँ तो अनुभव करता हूँ सारा भारतवर्ष चल रहा है । जब मैं बोलता हूँ तो मैं मान करता हूँ कि यह भारतवर्ष बोल रहा है । जब मैं श्वांस लेता हूँ तो महसूस करता हूँ कि यह भारतवर्ष श्वांस ले रहा है । मैं भारतवर्ष हूँ ।

देश-प्रेम का भाव राष्ट्रीयता का अनिवार्य तत्व है, देशभक्ति की पहचान है । इहलोक की सार्थकता का गुण है और मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग में निश्चित स्थान की उपलब्धि है । संस्कृत का सूक्तिकार तो जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर महान मानता है । सरदार पटेल का कहना है, ‘देश की सेवा में जो मिठास है, वह और किसी चीज में नहीं ।’

कथाकार प्रेमचन्द की धारणा थी, ‘खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है ।’ आज के भारत में देश-प्रेमी और देश-द्रोही की पहचान आसान नहीं रही । यहाँ तो राजा प्रताप की जय-जय की जगह अकबर की जय-जय, देश को लूटकर खाने वाले परम देशभक्त और चरित्र-हीनता की ओर धकेलने वाले ‘भारत-रत्न’ हैं ।

देशहित के लिए जीवनभर तन को तिल-तिल गलाने वाले परम साम्प्रदायिक और जातिवाद के परम पक्षधर धर्मनिरपेक्षता के अवतार बने हैं । विदेशी भाषा अंग्रेजी को महारानी और राष्ट्रभाषा हिन्दी की दासी मान नाक-भौंह सिकोड़ने वाले राष्ट्रीय हैं । जब यह मन का कालुष्य धुलेगा तो देश-प्रेमी की जय-जयकार और देश-द्रोही की धिक्कार होगी ।

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